Tuesday, July 28, 2009

हर साल कुर्बान होते हैं CRPF के 500 सीआरपीएफ जवान !

नई दिल्ली [Dinesh Shukla]। वैष्णोदेवी, अयोध्या, मथुरा और काशी विश्वनाथ की सुरक्षा। जम्मू कश्मीर में आतंकियों, मध्य भारत में नक्सलियों और पूर्वोत्तार में उग्रवादियों से मोर्चा। इतना ही नहीं अंडमान निकोबार जेल और इंफाल एयरपोर्ट की सुरक्षा और वीआईपी, वीवीआईपी सुरक्षा का जिम्मा। केंद्रीय आरक्षित पुलिस बल [सीआरपीएफ] के ढाई लाख से ज्यादा जवानों को यह पता नहीं होता कि अगले दिन उनकी ड्यूटी कहां होगी? उन्हें पता होती है सिर्फ एक बात- जहां भी होंगे, वहां हमेशा मौत से दो-दो हाथ ही करने होंगे।

अस्सी फीसदी जवानों को पिछले बीस सालों में कहीं शांतिपूर्ण तैनाती नहीं मिल सकी है। नतीजा है कि मुठभेड़, दुर्घटना और बीमारियों में हर साल सीआरपीएफ के 500 जवान कुर्बान हो रहे हैं।

देश में आंतरिक सुरक्षा कायम रखने में सबसे अहम भूमिका सीआरपीएफ की है, तो सबसे ज्यादा कीमत भी उसे चुकानी पड़ती है। हर तरह के उग्रवाद से लोहा, कानून-व्यवस्था और सुरक्षा गार्ड जैसी तमाम भूमिकाएं सीआरपीएफ को एक साथ निभानी होती हैं।

खतरनाक मोर्चो और मुश्किल हालात के चलते पिछले दस साल में 4899 बेशकीमती जवान जान से हाथ धो चुके हैं। चिंताजनक तथ्य है कि ज्यादातर जवान मोर्चा लेने के बजाय विभिन्न दुर्घटनाओं या बीमारियों में मारे गए। सिर्फ 2005 से 2008 के बीच तीन साल में ही 1425 जवान कैंसर, उच्च रक्तचाप, एड्स या दूसरी बीमारियों में मारे जा चुके हैं।

अगर मुठभेड़ में मारे गए लोगों की संख्या देखें तो 1946 से अब तक 1700 जवानों ने किसी विस्फोट या मुठभेड़ में बलिदान दिया। मुठभेड़ में सबसे ज्यादा जानें पिछले नौ सालों में गई हैं जिसमें 604 जवान आतंकी, उग्रवादी, नक्सली या किसी अन्य हमले में शहीद हुए। आंकड़ों से लग सकता है कि मुठभेड़ से ज्यादा जानें दूसरी वजहों से जा रही हैं, लेकिन वास्तव में बीमारी या दुर्घटना की वजह भी वे जटिल परिस्थितियां ही हैं, जिनमें ये जवान काम करते हैं।

उनकी तैनाती ज्यादातर ऐसी जगहों पर होती है, जहां जरा सा चूकने पर मौैत मिलती है। 24 घंटे इसी मानसिक दबाव और छुंट्टी न मिलने जैसी घटनाएं सीआरपीएफ के जवानों को बीमार कर रही हैं। सीआरपीएफ के आंकड़ों के मुताबिक 80 फीसदी जवानों को 35 साल के अपने कैरियर में कभी भी शांतिपूर्ण जगहों पर तैनाती नहीं मिली। इतना ही नहीं, अस्सी फीसदी जवानों की पैंतीस साल की औसत नौकरी में बीस साल विभिन्न जगहों पर तैनाती में बीते हैं। इस तनाव और दबाव के चलते बीते तीन साल में एक लाख से ज्यादा जवानों के बीमारियों से जूझने की खबरें आई हैं।

इनमें से सबसे ज्यादा 27 हजार तनाव व उच्च रक्तचाप, छह हजार हेपेटाइटिस, सात हजार डायबिटीज, सात सौ कैंसर और 1300 एड्स से पीड़ित हैं। इतना ही नहीं चर्म रोगों से ग्रसित जवान 52 हजार हैं तो 16,300 मलेरिया से ग्रसित हैं। यही नहीं, तनाव और हताशा इतनी तारी हो जाती है कि कई मर्तबा जवान अपने वरिष्ठों और साथियों पर ही गोली चला बैठते हैं।

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