Monday, July 27, 2009

सेनानी पुत्र को पल-पल मौत के मुंह में धकेल रही अक्षमता !

नगरा (बलिया)। 'जिन्दगी की तलाश में हम, मौत के कितने पास आ गए जब ये सोचे तो घबरा गए, आ गये हम कहां आ गये।' साथी फिल्म की उपरोक्त पंक्तिया वर्ष 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ों आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.कामता प्रसाद के सबसे छोटे पुत्र पारसनाथ वर्मा के ऊपर इन दिनों शत प्रतिशत चरित्रार्थ हो रही है। सेनानी स्व. कामता प्रसाद का परिवार इन दिनों आर्थिक तंगी से गुजर रहा है। स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि तीसरा पुत्र पारसनाथ वर्मा बीमारी की अवस्था में आर्थिक तंगी के चलते मौत की दहलीज पर खड़ा है। क्षेत्रीय विधायक सनातन पाण्डेय के प्रयास से सदर अस्पताल बलिया में हुआ हार्नियां का आपरेशन सफल नहीं रहा आगे का इलाज कराने में धनाभाव आड़े आ रहा है और यही अक्षमता पारसनाथ को पल-पल मौत के मुंह में धकेल रही है। जन प्रतिनिधियों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों के यहां लगाई गयी गुहार भी काम नहीं आ सकी है। पारसनाथ वर्मा ने जागरण को बताया कि विधायक सनातन पाण्डेय के पत्र पर उसने 29 नवम्बर 2007 को जिला चिकित्सालय बलिया में अपना हार्नियां का आपरेशन कराया था। आपरेशन के बाद से हालत सुधरने के बजाय और बिगड़ने लगी तथा दर्द शुरू हो गया, दुर्भाग्य से शल्य चिकित्सा विफल रही। नतीजा आपरेशन वाले हिस्से का पेट बाहर निकल आया। इसमें बराबर पीड़ा होती रहती है। उन्होंने बताया कि स्थानीय डाक्टरों को दिखाने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला। 13 जुलाई 2007 को बड़हलगंज के चिकित्सक को दिखाया, चिकित्सक ने कहा कि आंत में कोई चीज चिपक रही है। आपरेशन करना पड़ेगा, 12 हजार खर्च आयेगा, फिर तो सर पर आसमान ही टूट पड़ा। पैसे के जुगाड़ में पारसनाथ इधर-उधर भटक रहा है। चन्दा भी कोई देने को तैयार नहीं है।

सेनानी पुत्र पारसनाथ की पारिवारिक पृष्ठभूमि पर यदि नजर दौड़ायी जाय तो पत्‍‌नी गंगाजलि देवी 31 वर्ष के अतिरिक्त एक पुत्र दीपक कुमार 12 वर्ष व तीन पुत्रियां मीरा, राधिका व जानकी है। मीरा को येन-केन-प्रकारेण शादी हो चुकी है। ससुराली वाले की प्रताड़ना के चलते मीरा अपने पिता के यहां ही रह रही है। आजादी की जंग में सन् 1942 के आंदोलन एवं चरौवां काण्ड के नायक रहे उभांव थाना क्षेत्र के चरौवां गांव निवासी स्व.कामता प्रसाद ने अहम किरदार निभाया। ब्रितानियां हुकूमत के हर जुल्मो-सितम को हंसते-हंसते इसलिए सह गए कि देश आजाद होगा तो तस्वीर दूसरी होगी लेकिन अफसोस वर्तमान शासन व जिला प्रशासन ने उनके त्याग को अनसुना कर दिया। जिसके फलस्वरूप सेनानी का परिवार आज तंगहाली के दौर से गुजार रहा है।

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