Wednesday, October 26, 2011

....और सितारे उतर आये जमीं पर !

अंधेरे पर उजाले की विजय का प्रतीक पर्व दीपावली की पूर्व संध्या पर खिलाड़ियों ने दीपों का त्योहार अनोखे ढंग से मनाया। मंगलवार की शाम यहां वीर लोरिक स्टेडियम में रंग-बिरंगी मोमबत्तियों का कारवां रोशन होते ही ऐसा लगा मानों फलक के सितारे पल भर के लिए जमीं पर उतर आये हों। इस विहंगम नजारे का साक्षी बने सैकड़ों खेल प्रेमी। आलम ये रहा कि स्टेडियम में तो लोग जमे ही थे, आस-पास के घरों की छतों पर पर भी लोगों ने अपनी मौजूदगी दर्ज करायी। शाम ढलने के बाद दीपोत्सव की शुरुआत क्रीड़ा अधिकारी राजेश कुमार सोनकर ने एथलेटिक्स कोर्ट पर परम्परा के अनुरूप दीप जलाकर जैसे ही की, पूरा स्टेडियम रोशनी से नहा गया। क्रिकेट ग्राउण्ड के अलावा बास्केटबाल, हैण्डबाल समेत अन्य खेलों के मैदानों पर भी मोमबत्तियां व दीये जलाये गये। कुछ ही देर में पूरा स्टेडियम गुलजार हो गया। इस दौरान प्रशासनिक अधिकारियों के साथ खेल संघों से जुड़े लोग व खेल प्रेमी भी मौजूद रहे। इनका स्वागत क्रीड़ा अधिकारी राजेश कुमार सोनकर, सहायक प्रशिक्षक देवी प्रसाद व मोहम्मद जावेद अख्तर द्वारा किया गया।

Wednesday, October 19, 2011

सेनानी डॉ. योगेन्द्र का निधन !

सन् 1942 के स्वतंत्रता आंदोलन के दरम्यान अंग्रेज सिपाहियों की बंदूकें छीनने, डाकघर एवं रेलवे स्टेशन जलाने में अहम भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता सेनानी डॉ.योगेन्द्र नाथ तिवारी का 86 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया। डॉ.तिवारी काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। चितबड़ागांव नगर पंचायत के शास्त्री नगर वार्ड निवासी योगेन्द्र नाथ तिवारी आजीवन कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहे। आप कांग्रेस पार्टी के जनपदीय सेक्रेटरी क्रय विक्रय सहकारी समिति के उपाध्यक्ष, कृषि मंडी समिति के अध्यक्ष तथा सतीश चन्द्र महाविद्यालय की प्रबंध समिति में उपाध्यक्ष रहे। सेनानी के निधन का समाचार सुनते ही लोगों का हुजूम उनके आवास पर उमड़ पड़ा और भीगी आंखों से उन्हें अंतिम विदाई दी। जिला प्रशासन के प्रतिनिधि के रूप में तहसीलदार सदर आशुतोष दूबे ने शव पर पुष्प अर्पित किये तथा 5 हजार रुपये प्रदान किये। थानाध्यक्ष प्रभुनाथ ने अपने हमराहियों के साथ गार्ड आफ ऑनर दिया। सेनानी का शवदाह तमसा तट पर गाजे बाजे के साथ किया गया।

करुणा की प्रतिमूर्ति थे बाबा पशुपतिनाथ !

स्वामी पशुपति बाबा के स्मरण से एक भव्याकृति व करुणा स्वरूप सामने आ जाता है। जिसने एक बार भी उनका दर्शन किया अपने को धन्य समझा। बाबा ज्ञान, भक्ति व साधना की त्रिवेणी थे। उन्होंने साधना के काल में बबूल व तुलसी की पत्ती खाकर और गंगा जल से तृप्त हो गंगा और नारायणी के कगारों में गर्मी-सर्दी और बरसात को मात्र एक वस्त्र के सहारे बिताकर देहाध्यास से विमुक्ति प्राप्त कर ली थी। दियारे में बबूल पतलों तथा हिंगुओं के बीच रहते थे। बाबा का आहार बथुआ, गुमबन, झूनझून का साग तथा बबूल की पत्तियां थीं। प्रमुख गुण उनकी सर्व सुलभता थी। पैसा, रुपया छूते नहीं थे। उनको इसकी आवश्यकता भी नहीं थी। जान बूझकर किसी को चमत्कार नहीं दिखाते थे, कभी-कभी ऐसी घटनाएं हो जाया करती थीं। शंकराचार्य स्वरूपानन्द सरस्वती ने उन्हे आकाश मार्ग से गमन करने वाला एकमात्र यति बताया था। स्वामी त्रिदण्डी स्वामी ने बताया था कि पशुपति नाथ की लंगोटी उनके साधना काल से ही स्वर्ग में सूख रही है। करपात्री जी महराज ने चलता-फिरता भगवान शंकर तथा साधना में अपने से बहुत आगे बताया था। बाबा भक्तों के लिए माता-पिता, भाई-बंधु सखा-मित्र सब कुछ थे। किसी दर्शनार्थी किसी भी जिज्ञासु के मन के प्रश्नों तथा शंकाओं का वे बिना बताये समाधान बता देते थे। बाबा का प्रादुर्भाव विक्रम संवत 1967 कार्तिक कृष्ण सप्तमी को बलिया जिला के शुभनथही गांव में धनराज मिश्र के पुत्र के रूप में हुआ था। वह समाज के दुर्बल भोले तथा गरीब लोगों के प्रति सहानुभूति रखते थे। बाबा ने अविलम्ब गो-हत्या बन्दी हेतु स्वामी करपात्री जी महराज के आंदोलन को सफल बनाने के लिए अहम् भूमिका निभायी। बाबा 11 जुलाई सन् 2004 को पुनाई चक पटना में ब्रह्मालीन हुए।