Tuesday, November 27, 2012

दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाना ही असली खुशी

जगदीश शुक्ला ने 1944 में उत्तर प्रदेश, भारत के बलिया जिले में एक छोटे से गाँव (मिर्धा) में पैदा हुआ था. इस गांव में बिजली नहीं, कोई सड़क या परिवहन, और कोई प्राथमिक स्कूल की इमारत नहीं था. अपनी शिक्षा के प्राथमिक विद्यालय के अधिकांश एक बड़े बरगद के पेड़ के तहत प्राप्त किया गया था. वह S.R.S. से पारित हाई स्कूल, गणित और संस्कृत में गौरव के साथ प्रथम श्रेणी में श्योपुर,. उन्होंने हाई स्कूल में विज्ञान का अध्ययन करने में असमर्थ था क्योंकि कोई भी अपने गांव के पास स्कूलों के विज्ञान की शिक्षा भी शामिल है. उनके पिता स्वर्गीय श्री चन्द्र शेखर शुक्ला, उससे पूछा कि गर्मियों के दौरान 10 के माध्यम से 6 कक्षाओं के लिए विज्ञान की पुस्तकों से पहले वह अनुसूचित जाति कॉलेज, बलिया के लिए भर्ती कराया गया था, विज्ञान का अध्ययन करने के लिए पढ़ें. अनुसूचित जाति के कॉलेज से 12 ग्रेड पारित करने के बाद, उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू), जहां 18 साल की उम्र में, वह भौतिकी, गणित, और पहली कक्षा में भूविज्ञान के साथ बी एस (सम्मान) पारित कर दिया और फिर चला गया भूभौतिकी में एमएस अर्जित 1964 में प्रथम श्रेणी में. वह बीएचयू से भूभौतिकी में 1971 और SCD में पीएचडी प्राप्त मौसम विज्ञान में 1976 में एमआईटी से.

प्रख्यात मौसम वैज्ञानिक प्रो.जगदीश शुक्ल ने कहा कि दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाना ही असली खुशी है। इंसानियत का तकाजा है कि इसे गंभीरता से लिया जाय। यह बातें उन्होंने मंगलवार को नगर के बापू भवन में आयोजित अपने सम्मान समारोह में कहीं। इस मौके पर नागरिक अभिनंदन समिति द्वारा उन्हें अंगवस्त्रम से अलंकृत करने के साथ ही स्मृति चिह्न देकर भी सम्मानित किया गया। प्रो.शुक्ल ने कहा कि काम ऐसा करें कि उसका लाभ सभी को मिले। इससे जो संतुष्टि मिलती है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि खुशी ऐसे मनाएं जिससे दूसरों को कोई परेशानी न हो। अपने शोधों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मेरे सारे शोध मानवीय मूल्यों की रक्षा पर ही आधारित रहे। प्रो.शुक्ल ने लोगों को इस दिशा में आगे आने का आह्वान किया। वक्ताओं में डॉ.जनार्दन राय, डॉ.रघुवंशमणि पाठक, डॉ.एसएस चंद्रात्रेय, चंद्रशेखर उपाध्याय, नागेंद्र पांडेय, शुभ्रांशु शेखर पांडेय, कांग्रेस जिलाध्यक्ष राघवेंद्र प्रताप सिंह, केएन उपाध्याय, सुरेंद्र सिंह, विश्राम यादव, अंजनी कुमार पांडेय आदि शामिल रहे। अध्यक्षता पंडित पारसनाथ मिश्र व संचालन डॉ. राम गणेश उपाध्याय ने किया।

Wednesday, September 26, 2012

विवेक सीपीएमटी में चयनित !

नगर के जापलिनगंज निवासी विवेक कुमार गुप्त का चयन सीपीएमटी के माध्यम से एमबीबीएस में हुआ है। उन्होंने कान्वेंट स्कूल से इंटर तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद कानपुर से सीपीएमटी की तैयारी की थी। इस वर्ष वेटेनरी के साथ ही उनका चयन एमबीबीएस में भी हुआ। श्री गुप्त वरिष्ठ पत्रकार गौरीशंकर गुप्त के पुत्र हैं।

Monday, September 17, 2012

आशुतोष न्यायिक सेवा में चयनित !

जनपद के बसंतपुर निवासी आशुतोष कुमार सिंह ने कोलकाता उच्चतर न्यायिक सेवा की परीक्षा में सफलता अर्जित की है। उनकी सफलता से घर व गांव में खुशी का माहौल है। श्री सिंह ने वर्तमान में बिहार न्यायिक सेवा में सहायक अभियोजन अधिकारी के पद पर रहते हुए सफलता अर्जित की है। उन्होंने कहा कि निश्चित अवधि में कठिन परिश्रम व लगन से किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में सफलता पाई जा सकती है।

Wednesday, September 12, 2012

प्रवेश फार्म व परीक्षाफल उपलब्ध

आर्य एनटीटी सेक्टर हरपुर नई बस्ती में सत्र 2011-12 का परीक्षाफल एवं एक वर्षीय व द्विवर्षीय का प्रवेश फार्म उप्र सरकार के शासनादेश के अनुसार उपलब्ध हो गया है। प्राचार्य अर्चना श्रीवास्तव ने छात्रों को निर्देश दिया है कि निर्धारित अवधि में फार्म भर कर जमा कर दें। रेवती प्रतिनिधि के अनुसार एनडी इंटर कालेज छेड़ी हाईस्कूल व इंटर बोर्ड परीक्षा 2013 का फार्म विद्यालय में उपलब्ध है। संबंधित छात्र-छात्राएं एक सप्ताह के अंदर फार्म भरकर विद्यालय में जमा कर दें। उक्त आशय की जानकारी प्रधानाचार्य राजीव रत्‍‌न चौबे ने दी है।

Monday, July 23, 2012

मेरे घर के आगे मातृ छाया लिखा है !!

हजार तोड के आ जाऊं उससे रिश्ता मैं जानता हूं वो जब चाहेगा बुला लेगा घर-परिवार का रिश्ता कुछ ऐसा ही होता है। थोडा खट्टा, थोडा मीठा। कभी नोक-झोंक और कभी मान-मनौवल। इतना ही नहीं, कभी घात-प्रतिघात, कभी षडयंत्र और कभी एक-दूसरे के हितों के लिए जान तक दे देने का ज ज्बा। यह जज्बा सिर्फ कहने-सुनने तक ही सीमित नहीं होता, व्यवहार में भी दिखता है। शायद इसीलिए रिश्तों के संबंध में आम भारतीय कहावत है- खून हमेशा पानी से गाढा होता है। पारिवारिक रिश्तों को सहेजने-समेटने की सोच हमारी परंपरा में ही रही है और यही वजह है जो भारत में औद्योगिक क्रांति के बहुत बाद तक परिवार का अर्थ संयुक्त परिवार से लिया जाता रहा है। कई पीढियों के लोग एक छत के नीचे एक साथ सिर्फ रहते ही नहीं रहे हैं, सभी सबके सुख-दुख को अपना सुख-दुख समझते रहे हैं। पर्व-उत्सव से लेकर व्यवसाय और रिश्तेदारियों तक के निर्णय सामूहिक होते रहे हैं। एकता में शक्ति की धारणा तो इसके मूल में रही ही है, हमारी कृषि और व्यापार आधारित अर्थव्यवस्था में भी इसका बडा योगदान रहा है। संयुक्त परिवार और सबके साथ रहने की इसी व्यवस्था ने हमें इतने रिश्ते दिए, जितने शायद दुनिया में कहीं और नहीं हैं। बच्चाों की परवरिश और बुजुर्गो की देखभाल हमारे लिए चिंता की बात नहीं रही। इसीलिए ओल्ड एज होम एवं क्रेश भी बीती शताब्दी के अंतिम दशक तक केवल औद्योगिक महानगरों के कुछ हिस्सों तक सीमित रहे और इन जगहों पर किसी परिवार के बुजुर्गो या बच्चाों का होना शर्मनाक माना जाता रहा। लेकिन अब? छोटी-छोटी बातों से अब हमारी प्रतिष्ठा और सुविधा दोनों ही के विपरीत होते हुए भी कई परिवारों के लिए यह आवश्यकता बन चुकी है। सरसरी तौर पर देखें तो यह दो बातों का नतीजा है। एक तो औद्योगिक क्रांति के चलते अपनी मूल जगहों से नौकरी के लिए युवाओं का टूटना और दूसरे परंपरागत मूल्यों-मान्यताओं के कारण बुजुर्गो का उन्हीं मूल जगहों से जुडे रहना। इन्हीं दो बडी वजहों के बीच में कई और छोटी-छोटी वजहें भी हैं, मसलन- युवाओं में निजी स्वतंत्रता की चाह, बुजुर्गो में अपने परंपरागत मूल्यों एवं रीति-रिवाजों को न छोडने की जिद और कई पीढियों की अर्जित पैतृक संपदा को न सिर्फ सहेजने, बल्कि उसी जगह बनाए रखने का मोह। कुछ परिवार पहली दो वजहों से बंटे तो कुछ बाद की छोटी-छोटी बातों से अपनी मूल जगह पर रहते हुए भी बंट गए। बहुत सारे परिवार अधिक से अधिक संपदा पर अपने अधिकार की चाहत और इसके चलते भाइयों के बीच बढी प्रतिस्पर्धा के चलते भी बंटे। नतीजा यह हुआ कि संयुक्त परिवार की अपनी व्यवस्था के कारण दुनिया भर में अलग पहचान रखने वाला भारतीय समाज छोटे-छोटे एकल परिवारों का समाज बनता चला गया। वक्त की जरूरत परिवारों के टूटने के पिछली लगभग एक शताब्दी के हमारे अनुभव ने हमें बहुत कुछ सिखाया भी। हमने जाना कि एकल परिवार में निजी स्वतंत्रता की मृग मरीचिका और संयुक्त परिवार के अनुशासन से मिलने वाली सुरक्षा व निश्चिंतता के बीच क्या फर्क है। खास कर यह अनुभव हमें तब हुआ जब बढती महंगाई और जरूरतों ने पति-पत्‍‌नी दोनों को नौकरी के लिए मजबूर कर दिया और बच्चों की परवरिश एक समस्या बन गई। दूसरी तरफ, अपने से दूर मौजूद बुजुर्ग माता-पिता के स्वास्थ्य की चिंता भी बेचैन बनाए रखने लगी। किसी के लिए यह संभव नहीं कि बार-बार हजार किलोमीटर दूर माता-पिता के पास आ-जा सके। इस समस्या ने ही उनका ध्यान संयुक्त परिवार की ओर खींचा। लोगों को यह लगने लगा कि आए दिन माता-पिता के स्वास्थ्य और बच्चों की देखभाल को लेकर फिक्र करते रहने से बेहतर है, सबको साथ लेकर रहा जाए। यही वजह है जो अब सभी संयुक्त परिवार की परंपरागत व्यवस्था को अहमियत देने लगे हैं। मैट्रिमोनियल वेबसाइट शादी डॉट कॉम द्वारा अपने सदस्यों के बीच किया गया एक सर्वे बताता है कि 54 प्रतिशत लडकियां संयुक्त परिवारों में रहना चाहती हैं और संयुक्त परिवार से उनका आशय केवल सास-ससुर तक ही सीमित नहीं है, इस दायरे में भाई-बहनों समेत पूरा परिवार आता है। दिल्ली में ही सॉफ्टवेयर इंजीनियर मिताली चंदा कहती हैं, ज्वाइंट फेमिली का जो सपोर्ट सिस्टम होता है, वह किसी भी स्थिति में बिखरने नहीं देता। आपके साथ कुछ ऐसे लोग होते हैं, जिनके बारे में आप हमेशा आश्वस्त रह सकते हैं कि वे हर हाल में साथ देंगे ही और इसके लिए हमें अतिरिक्त रूप से एहसानमंद होने की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि वे हमारे अपने हैं। घट रहा टकराव हालांकि समाजशास्त्री प्रो. सत्य मित्र दुबे इसे एक एक नए ढंग की सामाजिक संरचना के रूप में देखते हैं। वे इसे संयुक्त परिवार के बजाय विस्तृत परिवार का नाम देते हुए कहते हैं, सास-बहू के बीच का टकराव कम हो रहा है। बल्कि वे साथ रहना पसंद करने लगी हैं। इसकी कई वजहें हैं। कामकाजी दंपतियों के लिए यह संभव ही नहीं है कि अपने बच्चाों और घर की देखभाल कर सकें। ऐसी स्थिति में माता-पिता या सास-ससुर के साथ होना उन्हें आत्मिक और मनोवैज्ञानिक सुरक्षा देता है। मैंने चीन में रहते हुए यह देखा कि वहां युवा जोडों में माता-पिता के साथ रहने की चाह एक प्रवृत्ति बनती जा रही है और अध्ययन बताते हैं कि केवल भारत और चीन ही नहीं, बल्कि पूरे एशिया में यह रुझान बढा है। प्रो. दुबे जिन कारणों की ओर संकेत कर रहे हैं, नई पीढी उसे साफ तौर पर स्वीकार करती है। मल्टीनेशनल कंपनी में इवेंट मैनेजर लिपिका शाह कहती हैं, मुझे पता है कि शादी के बाद न्यूक्लियर फेमिली में होना नुकसानदेह होगा। बच्चो होने के बाद मेरे लिए अपनी जॉब कंटिन्यू कर पाना संभव नहीं होगा। मैं अपनी उन दोस्तों को शादी के बाद भी बिलकुल निश्चिंत देखती हूं जो अपने इन-लॉज के साथ हैं। उन्हें इस बात की फिक्र नहीं होती कि बच्चो की देखभाल कौन करेगा। उनके पति को भी इस बात की चिंता नहीं होती कि अलग या दूर रहने वाले उनके पेरेंट्स कैसे हैं। जबकि न्यूक्लियर फेमिली सेटअप वाले अकसर तनाव में होते हैं। संयुक्त परिवार में रोक-टोक और विवादों पर साइंटिस्ट उर्विका भट्टाचार्जी का जवाब है, मेरी शादी के दो साल हो गए और अभी तक तो ऐसी कोई अनुभव नहीं हुआ। मुझे तो लगता है कि सास-ससुर की ओर से रोक-टोक की जो बात है, वह केवल टीवी सीरियल्स में होता है। हो सकता है कि जो बहुत ट्रडिशनल लोग हैं वे ऐसा करते भी हों, लेकिन पढे-लिखे लोग युवाओं के हालात जानते हैं और उनकी भावनाओं की कद्र भी करते हैं। यह जरूर है कि जो बडे लोग हैं, वे आपसे रिस्पेक्ट की उम्मीद करते हैं और वह आपको करनी चाहिए। दूसरी बात यह भी है कि आप किसी व्यवस्था से सिर्फ सुविधाएं हासिल करें और अपना फर्ज न निभाएं, ऐसा नहीं चल सकता। थोडी-बहुत नोक-झोंक तो पति-पत्नी के बीच भी होती है। इसे लेकर बहुत सोचने की आवश्यकता नहीं है। केवल स्वार्थ नहीं यह बात केवल सुविधा और कर्तव्य तक ही सीमित नहीं है। असल में यह टकराव दो पक्षों के स्वार्थो के बीच का है। अधिकतर लोग अपने स्वार्थ तो साध लेना चाहते हैं, लेकिन जब दूसरे पक्ष के हितों की बात आती है तो किनारे हट जाते हैं। आम तौर पर लोग चाहते हैं कि दूसरे लोग हमारे अनुसार थोडा सामंजस्य बनाएं, लेकिन दूसरों के लिए स्वयं समझौता करना उन्हें भारी लगता है। अपने ही स्वार्थो को हमेशा ऊपर रखने की प्रवृत्ति लंबे समय तक चल नहीं सकती। यह सही है कि संबंधों के मूल में अकसर स्वार्थ या आपसी हित होते हैं, लेकिन संबंधों का आधार प्रेम है, स्वार्थ नहीं। जहां स्वार्थ हावी हो जाते हैं, वहां संबंध बोझ बन जाते हैं। प्रो. सत्य मित्र दुबे दो तरह के लोगों की बात करते हैं, एक वे जो पूरे परिवार को हर हाल में साथ लेकर रहना चाहते हैं और दूसरे वे जो अलग ही रहना पसंद करते हैं। जो साथ रहना चाहते हैं वे दूर रहकर भी एक-दूसरे की चिंता करते हैं। संपर्क बनाए रखते हैं। जिनकी सोच केवल अपने तक सीमित है, वे एक ही शहर में रहते हुए भी अपने बुजुर्गो का हालचाल तक नहीं लेते। आजकल महानगरों में बुजुर्गो की जो हत्याएं बढ रही हैं, इसकी बडी वजह यह प्रवृत्ति है। अगर आपसी संपर्क बनाए रखा जाए तो न केवल ऐसे दुखद दुर्घटनाओं, बल्कि दंपतियों के बीच बढते तलाक के मामलों, बच्चों में बढते अकेलेपन और किशोरों में बढते डिप्रेशन एवं तनाव जैसी स्थितियों पर भी बहुत हद तक काबू पाया जा सकता है। क्योंकि बुजुर्ग केवल संरक्षक और अनुशासन के केंद्र ही नहीं, घर में सेफ्टी वॉल्व का काम भी करते हैं। कई बार उनका रोष, कभी सलाह और कभी स्नेह बडी-बडी समस्याओं को आसानी से हल कर देता है। सैद्धांतिक ज्ञान पर जीवन के अनुभव हमेशा भारी पडते हैं। भारतीय परिवारों की संरचना की इसी विशिष्टता को देखते हुए यूरोप में ओल्ड एज होम्स और क्रेच अलग-अलग रखने के बजाय बुजुर्गो और बच्चाों को साथ रखने की संकल्पना पर कुछ प्रयोग किए गए। इन प्रयोगों और कुछ अन्य अध्ययनों से उन्हें सकारात्मक निष्कर्ष मिले। संपर्क मुश्किल नहीं हमारे देश में बहुत लोगों को अपनी परंपरा से यह एहसास मिला है। उन्हें दूर रहते हुए भी परिवार व रिश्तेदारों से संवाद बनाए रखना जरूरी लगता है। वे मानते हैं कि व्यस्तता और दूरी बहाना है, संपर्क बनाए रखना अब मुश्किल बात नहीं है। मध्य प्रदेश के सागर से आए चार्टर्ड एकाउंटेंट शिवेन्द्र परिहार दिल्ली में पत्नी और बच्चाों के साथ रहते हैं। उनके एक भाई, जो शिक्षक हैं, माता-पिता के साथ गांव में रहते हैं और दूसरे स्वीडेन में। शिवेंद्र के पिताजी के भी दो भाई हैं और सभी साथ रहते हैं। वह कहते हैं, हमारे बीच संपर्क निरंतर बना रहता है। फोन पर तो ह फ्ते-दो हफ्ते में बात हो पाती है, लेकिन इंटरनेट के मार्फत चैटिंग और संदेशों का आदान-प्रदान लगभग रोज की बात है। हालांकि संवाद-संपर्क की यह बात बुजुर्गो और बडों तक ही सीमित नहीं है। रिश्तों का सपोर्ट सिस्टम छोटे-बडे सबसे मिल कर ही बनता है। अलग-अलग मामलों में सबके ज्ञान और अनुभव काम ही नहीं आते, बल्कि तनाव भी कम करते हैं। निस्संदेह, यह खुशी की बात है कि नई पीढी अपनी परंपरा की खूबियों को न सिर्फ पहचानती है, बल्कि उन्हें अपनाने के लिए स्वयं आगे बढ रही है।

Thursday, June 21, 2012

व्यक्ति का शरीर ही वास्तविक मंदिर

किसी भी पूजा के लिए मंदिर, मस्जिद व चर्च आदि की कोई जरूरत नहीं। व्यक्ति का शरीर ही उसका वास्तविक मंदिर है और इसी मंदिर से परमात्मा की स्तुति स्वीकार होती है। कोटवारी गांव में मानव उत्थान सेवा समिति के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय विशाल संत सम्मेलन के प्रथम दिन बुधवार की सायं श्रद्धालु जनों को सम्बोधित करते हुए मानव धर्म के प्रणेता सद्गुरू सतपाल जी महराज के परम शिष्य महात्मा रत्‍‌नेश्वरानन्द जी, अलीगढ़ ने उक्त बातें कहीं। सत्संग की अविरल धारा को बहाते हुए कहा कि किसी भी मंदिर व मस्जिद में परमात्मा को बुलाने पर बोलता नहीं जबकि शरीर के अन्दर से निकली आवाज सीधे आत्मा अर्थात परमात्मा की आवाज होती है। अत: आत्मा को परमात्मा का अंश स्वीकार कर इस सत् को पहचानने की जरूरत है लेकिन यह तभी सम्भव है जब मनुष्य को सच्चा गुरु अर्थात सद्गुरु मिले। कुशीनगर से पधारे विद्वान रामअलबेला जी ने सत्संग पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह सत्संग मानव शरीर में ही प्राप्त हो सकता है। बिना भजन की सुख शांति उसी प्रकार प्राप्त नहीं हो सकती जिस प्रकार विशाल समुद्र को तैरकर पार करना असम्भव है। कहा कि बिना स्वतंत्र भक्ति के जीवन में सुख की कल्पना नहीं की जा सकती। सत्संग के आयोजक अशोक वर्मा सहित विचारानन्द जी, भरत जी, कृष्ण जी, गौतम शर्मा, इन्द्रदेव, त्रिवेणी शर्मा, आशुतोष तिवारी, अतवारो देवी, रम्भा देवी, ऊषा तिवारी आदि भक्तों की सराहनीय भूमिका रही।

Thursday, March 22, 2012

आईईएस में सातवां स्थान अर्जित कर बढ़ाया जिले का मान !

आल इण्डिया इंजीनियरिंग सर्विसेज की परीक्षा में सातवां स्थान हासिल कर जनपद के कर्णछपरा निवासी संजीत कुमार सिंह ने जिले का नाम रोशन कर दिया। श्री सिंह के घर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। उल्लेखनीय है कि गांव में ही मिडिल तथा यूपी कालेज वाराणसी से इंटरमीडिएट की शिक्षा ग्रहण कर संजीत ने यह ठान लिया था कि उसे एक अच्छा इंजीनियर बनना है। उसने वर्ष 2007 में रुड़की से आईआईटी की परीक्षा भी अच्छे अंक से उत्तीर्ण कर एक प्राइवेट कम्पनी में नौकरी कर ली। इस दौरान वे अपने मिशन में लगे रहे और अंतत: उसे पूरा किया। दूरभाष पर संजीत ने बताया कि मेहनत और दृढ़ संकल्प से किसी भी मंजिल को हासिल किया जा सकता है।

Saturday, March 3, 2012

लोगों ने देखा जिले के हाथों का हुनर !

नगर क्षेत्र के एक लाज में शुक्रवार को बलिया की ड्रेस डिजाइनर पूजा सिंह के डिजाइन किए गए वस्त्रों की भव्य प्रदर्शनी आयोजित की गयी जिसमें लेटेस्ट एम्ब्राइडरी, पेंटिंग, डाइड राजस्थानी साड़ी, प्रिंटेड प्योर शिफान सहित अन्य ब्रांडों को प्रस्तुत किया गया। वेद क्रिएशन के बैनर तले आयोजित इस प्रदर्शनी को देखने के लिए जिले के कोने-कोने से सैकड़ों लोग आए। सभी ने जनपद में पली बढ़ी इस डिजाइनर के हुनर की सराहना की। कहा कि यदि जनपद की प्रतिभाओं को उचित प्लेटफार्म मिले तो वे भी देश विदेश में अपना परचम लहरा सकते हैं। प्रदर्शनी देखने पहुंचे प्रमुख लोगों में प्रतिभा सिंह, डॉ.रीना सिंह निदेशक ज्ञानपीठिका, कृष्ण कुमार उपाध्याय उर्फ कप्तान बाबा सहित अन्य लोग शामिल रहे।

Thursday, March 1, 2012

शिक्षा से उभतरी है छात्रों की प्रतिभा !

शिक्षा एक बहुउद्देशीय वैचारिक प्रक्रिया है और वह छात्र-छात्राओं का सर्वागीण विकास करती है। शिक्षा न केवल इनकी सुप्त प्रतिभाओं का विकास करती है अपितु समाज व राष्ट्र के लिए उपयोगी प्राणी के रूप में इन्हे विकसित भी करती है। इसके पीछे शिक्षकों की भूमिका उल्लेखनीय है। यह बातें बुधवार को सरस्वती शिशु-विद्या मंदिर आनंद नगर के वार्षिकोत्सव पर मुख्य अतिथि बेसिक शिक्षा अधिकारी राम गोविन्द ने कही। उन्होंने कहा कि शिक्षा के अनेक साधन हैं जिसमें विद्यालय मुख्य माध्यम है। विद्यालय द्वारा आयोजित शारीरिक प्रदर्शन अत्यंत प्रशंसनीय कार्य है। इस अवसर पर डांडिया नृत्य, साड़ी नृत्य, योगचाप, गुलाटी, बिच्छूचाल, कुर्सी दौड़, जलेबी दौड़, गुब्बारा युद्ध, दण्डयोग, डम्बल योग, अग्निचक्र तथा साइकिल से साहसिक प्रदर्शन प्रस्तुत किया गया। बच्चों द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम ने सभी दर्शकों को आश्चर्य चकित कर दिया। कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ.प्रदीप श्रीवास्तव, बाल गोविंद भारती, सम्भाग निदेशक प्रेमधर पाण्डेय, विजय पाण्डेय, डॉ. विनय कुमार संयुक्त रूप से दीप प्र“वलित कर किया गया। सरस्वती वंदना के बाद विद्यालय के प्रधानाचार्य विमलेश मिश्र ने अतिथि परिचय कराया। संचालन आचार्य अवधेश पाण्डेय तथा आभार प्रकट विजय ने किया।

Tuesday, February 21, 2012

शिव तत्व से क्षेत्र का कण-कण हो उठा आलोकित !


स्थान-गोठाई स्थित पवित्र झाड़ीमठ, दिन-सोमवार, समय-रात। मौका था पांच कुण्डीय रुद्र महायज्ञ में महाशिवरात्रि पूजन, शिव रुद्राभिषेक व गंगा महाआरती का। मठ के समीप निर्मित आध्यात्मिक मंच पर भगवावस्त्र में पंक्तिबद्ध विराजमान काशी के 108 वैदिक ब्राह्माण। महामण्डलेश्वर भवानी नंदन यति के मंच पर पहुंचते ही मानो जर्रा-जर्रा हर हर महादेव का उद्घोष करने लगा। वैदिक मंत्रों के उच्चारण से क्षेत्र का कण-कण शिव तत्व से आलोकित हो उठा। हाथों में नीर-क्षीर, धतूरा, मालाफूल लिये कतारबद्ध वैदिक विद्वानों ने सवा लाख पार्थिवेश्वर शिवलिंग का रुद्राभिषेक किया। फिर शुरू हुई गंगा महाआरती। शहनाई से निकल रही भक्ति गीतों की धुन आचार्यो द्वारा अनवरत शंखनाद, डमरु से निकल रही डम-डम-डम की आवाज व घंटा-घड़ियाल की ध्वनि से लग रहा था मानो साक्षात शिव ही तांडव कर रहे हों। पाण्डाल में मौजूद करीब एक लाख श्रद्धालुओं ने इस अलौकिक दीपों के स्फुटित प्रकाश पुंज को देख भक्ति सागर में जी भर के डुबकी लगाया। समूचा झाड़ीमठ दीपों की जगमगाहट से प्रकाशमान हो उठा। ऐसी खूबसूरत छटा को देख लग रहा था मानों पृथ्वी पर स्वर्ग उतर आया हो। गंगा महाआरती चार प्रकार से की गयी। पहली धूप से, दूसरी गुगल से व तीसरी 51 दिपों से। रुद्राभिषेक के लिए पूरी रात को चार प्रहर में बंटा गया था। एक-एक प्रहर दो-दो घंटों का रहा। पूजन का कार्यक्रम रात 8 बजे से प्रारम्भ होकर सुबह 5 बजे तक चला। हथियाराम मठ के मठाधीश्वर, महामण्डेश्वर भवानी नंदन यति स्वयं मंच पर मौजूद रह कर वैदिक मंत्रों से पार्थिव पूजन किये। रुद्राभिषेक आचार्य बालकृष्ण व गंगा महाआरती से आचार्य रमेश दूबे के नेतृत्व में सम्पन्न हुई। इस अवसर पर वाराणसी से पधारे शास्त्रीय संगीत के पारंगत कलाकार रुद्रशंकर मिश्र व उदयशंकर मिश्र ने शिव ताण्डव नृत्य प्रस्तुत कर सभी को भावविभोर कर दिया। पार्थिवेश्वर पूजन के पश्चात प्रात:काल वृंदावन राममण्डली के कलाकारों द्वारा निकाली गयी शिव बारात की झांकी आकर्षक का केन्द्र बनी रही।

बिना गुरु के नहीं हो सकती परमात्मा की प्राप्ति

क्षेत्र के झाड़ी मठ गोठाई में आयोजित पंचकुण्डीय रूद्र महायज्ञ के अंतिम दिन मंगलवार को सिद्धपीठ हथियाराम मठ के पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर भवानी नंदन यति ने श्रद्धालुओं को सत्संग रूपी अमृत का पान कराते हुए कहा कि जीवात्मा को परमात्मा की आवश्यकता होती है। परमात्मा को प्राप्त करने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। बिना गुरु के परमात्मा को पाने का रास्ता मालूम नहीं हो सकता। इसलिए मनुष्य को किसी ज्ञानी गुरु के पास पहुंच कर गुरुमंत्र लेना चाहिए। कहा कि जीवन क्षणभंगुर है, जीवन की कली कब खिलेगी और कब मुरझा जाएगी यह किसी को पता नहीं है। इसलिए जो कार्य कल करना है उसको आज ही कल लेना चाहिए। भक्ति के लिए सबसे पहले बैठना, बोलना व चलना सीखना होगा। उपासना के लिए सर्वप्रथम इसकी आवश्यकता होती है। जब गुरुओं की कृपा शिष्य पर होगी तो उस पर भगवान की भी कृपा होगी। श्री यति जी ने कहा कि भगवान की समीक्षा नहीं करनी चाहिए। हल्द्वानी के महामंडलेश्वर परेषानंद जी ने कहा कि श्रद्धा व विश्वास से बड़ा कोई अन्य वस्तु नहीं है। श्रद्धा व विश्वास के साथ यदि भगवान का पूजन किया जाए तो वह अवश्य प्रसन्न हो जाएंगे।

पूजित पार्थिव शिवलिंग घाघरा में विसर्जित

पंचकुंडीय रूद्र महायज्ञ के अंतिम दिन मंगलवार को पूजित सवा लाख पार्थिव शिवलिंग को बिल्थरारोड के घाघरा नदी में विसर्जित कर दिया गया। अंत में भंडारे का आयोजन कर श्रद्धालुओं को महाप्रसाद का वितरण किया गया।

Monday, February 20, 2012

शिवलिंग स्थापना का कार्यक्रम शुरू !


नगर के आईटीआई रामपुर उदयभान में मुक्तेश्वर महादेव के शिवलिंग की स्थापना एवं वैदिक यज्ञ का पांच दिवसीय कार्यक्रम सोमवार को धूमधाम से प्रारम्भ हुआ। कार्यक्रम के तहत कलश शोभा यात्रा निकाली गयी। सैकड़ों की संख्या में बच्चे, महिलाएं एवं पुरुष कलश में गंगा जल लेकर क्षेत्र के मुख्य मागरें का चक्रमण करते हुए पुन: आईटीआई के वैदिक यज्ञ मंडप पर पहुंचे। स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी मौनी बाबा के निर्देशन में मुक्तेश्वर महादेव शिव लिंग की स्थापना एवं वैदिक यज्ञ का कार्यक्रम 20 से 24 फरवरी तक चलेगा। इसके अन्तर्गत प्रतिदिन सुबह 8 बजे से वैदिक यज्ञ होगा और 24 फरवरी को मुक्तेश्वर महादेव शिव लिंग की स्थापना व प्राण प्रतिष्ठा की जायेगी। उसी दिन शाम 4 बजे से यज्ञ की पूर्णाहुति के उपरान्त महाप्रसाद वितरण किया जायेगा। प्रतिदिन शाम को 5 बजे से मौनी बाबा का प्रवचन होगा। सोमवार के कार्यक्रम की अध्यक्षता एमडी सिंह ने की। अशोक सिंह, निशांत कुमार, शशि सिंह, अजीत यादव, दिगम्बर सिंह, दिनेश शुक्ला, राजेश सिंह आदि का सक्रिय सहयोग रहा।

Wednesday, February 15, 2012

शरीर में ही निवास करते परमात्मा !

आद्य प्रतिष्ठापक व प्रवर्तक अद्वैत शिवशक्ति सम्प्रदाय ईश्वरदास ब्राह्मचारी ने कहा कि जिस परमात्मा का दर्शन तथा प्राप्ति के लिए हम अनेक प्रकार के साधन की खोज करते हैं वे परमात्मा हमेशा शरीर में ही निवास करते हैं। वेद, दर्शन, कविता बनाने का ज्ञान मात्र होने से परमात्मा के स्वरूप का साक्षात्कार नहीं हो सकता।

वह क्षेत्र के ज्ञानकुंज सीनियर सेकेण्ड्री एकेडमी वंशीबाजार में चल रहे तीन दिवसीय आत्म जागरण अभियान के तहत श्रद्धालुओं से रूबरू थे। कहा कि ईश्वर आनंद रूपी लहरों के महासागर में से किसी एक का भी आनंद लेकर परमानंद की अनुभूति के साथ ईश्वर का साक्षात्कार कर सकते हैं। कहा कि प्राइमरी कक्षा में हम जिस चार पंक्ति के प्रार्थना को गाते हैं यदि उसे परिवार के साथ सस्वर मिलकर गाया जाय तो निश्चित ही हमारे बच्चों का चरित्र स्वच्छ, उज्जवल व प्रकाश मय होगा।

Thursday, January 26, 2012

वन डे टीम में संजीव का चयन !

नगर के प्रोफेसर कालोनी निवासी शंभू दयाल मिश्र के पुत्र संजीव मिश्र का चयन रणजी ट्राफी सर्विसेज वनडे टीम में हुआ है। श्री मिश्र का यह चयन इंटर सर्विसेज के तीन मैचों में शानदार प्रदर्शन की बदौलत हुआ है। जानकारी देते हुए क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव अजीत कुमार सिंह बाबू ने बताया कि श्री मिश्र 20 से 28 फरवरी तक दिल्ली में होने वाले मैच में सर्विसेज टीम का प्रतिनिधित्व करेंगे जिसमें सर्विसेज के अलावा दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, जम्मू कश्मीर व हिमाचल प्रदेश की टीमें अपना मैच खेलेंगी। बलिया क्रिकेट एसोसिएशन कार्यालय पर उनका स्वागत किया गया। एसोसिएशन के संरक्षक सांसद नीरज शेखर व अध्यक्ष उमाशंकर सिंह ने टेलीफोन पर श्री मिश्र को बधाई दी। इस अवसर पर सर्वेश पाण्डेय, राकेश पाण्डेय, विकास सिंह, राहुल सिंह आदि मौजूद रहे।

Thursday, January 12, 2012

प्रथम चरण की प्रयोगात्मक परीक्षाएं 16 से !

वर्ष 2012 की इण्टरमीडिएट प्रयोगात्मक परीक्षाएं प्रथम चरण में 16 जनवरी से 31 जनवरी तक आयोजित की जाएंगी। जिला विद्यालय निरीक्षक प्रमोद कुमार ने जनपद के राजकीय/अशासकीय सहायता प्राप्त/वित्तविहीन मान्यता प्राप्त विद्यालयों के प्रधानाचार्यो को निर्देश दिया है कि वे अपनी संस्था के इण्टरमीडिएट परीक्षा के संस्थागत एवं व्यक्तिगत परीक्षार्थियों के अनिवार्य विषय की प्रयोगात्मक परीक्षाएं प्रत्येक दशा में 15 फरवरी तक निर्धारित पाठयक्रमानुसार सम्पादित कराकर अंकपूरित एवार्ड ब्लैंक /प्राप्तांक सूची हर हाल में 28 फरवरी तक क्षेत्रीय कार्यालय वाराणसी को प्रेषित कर दें। उन्होंने संस्थागत/व्यक्तिगत परीक्षार्थियों से कहा है कि वे अपने विद्यालय/पंजीकरण केन्द्र निरन्तर सम्पर्क स्थापित कर निर्धारित तारीख को प्रयोगात्मक परीक्षा में शामिल हों।