Thursday, June 21, 2012
व्यक्ति का शरीर ही वास्तविक मंदिर
किसी भी पूजा के लिए मंदिर, मस्जिद व चर्च आदि की कोई जरूरत नहीं। व्यक्ति का शरीर ही उसका वास्तविक मंदिर है और इसी मंदिर से परमात्मा की स्तुति स्वीकार होती है। कोटवारी गांव में मानव उत्थान सेवा समिति के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय विशाल संत सम्मेलन के प्रथम दिन बुधवार की सायं श्रद्धालु जनों को सम्बोधित करते हुए मानव धर्म के प्रणेता सद्गुरू सतपाल जी महराज के परम शिष्य महात्मा रत्नेश्वरानन्द जी, अलीगढ़ ने उक्त बातें कहीं। सत्संग की अविरल धारा को बहाते हुए कहा कि किसी भी मंदिर व मस्जिद में परमात्मा को बुलाने पर बोलता नहीं जबकि शरीर के अन्दर से निकली आवाज सीधे आत्मा अर्थात परमात्मा की आवाज होती है। अत: आत्मा को परमात्मा का अंश स्वीकार कर इस सत् को पहचानने की जरूरत है लेकिन यह तभी सम्भव है जब मनुष्य को सच्चा गुरु अर्थात सद्गुरु मिले। कुशीनगर से पधारे विद्वान रामअलबेला जी ने सत्संग पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह सत्संग मानव शरीर में ही प्राप्त हो सकता है। बिना भजन की सुख शांति उसी प्रकार प्राप्त नहीं हो सकती जिस प्रकार विशाल समुद्र को तैरकर पार करना असम्भव है। कहा कि बिना स्वतंत्र भक्ति के जीवन में सुख की कल्पना नहीं की जा सकती। सत्संग के आयोजक अशोक वर्मा सहित विचारानन्द जी, भरत जी, कृष्ण जी, गौतम शर्मा, इन्द्रदेव, त्रिवेणी शर्मा, आशुतोष तिवारी, अतवारो देवी, रम्भा देवी, ऊषा तिवारी आदि भक्तों की सराहनीय भूमिका रही।
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