Monday, July 27, 2009

जिन हाथों में कापी पेंसिल चाहिए होती है खुरपी हंसिया !

रतसर (बलिया)। कस्बे सहित आसपास के ग्राम्यांचलों में गरीबी रेखा से नीचे एवं निम्न, मध्यवर्गीय परिवारों में आज भी बालिकाओं की शिक्षा पर अभिभावक ध्यान नहीं दे रहे है। कस्बे के दर्जनों अभिभावकों का कहना है कि लड़की अगर ज्यादा पढ़ी-लिखी हो जायेगी तो योग्य वर ढूंढने में परेशानी होगी। विडम्बना यह है कि तेजी से बढ़ती जनसंख्या एवं गरीबी से दबे परिवारों के लिए पहली आवश्यकता रोटी है। ऐसे में जीवन की दहलीज पर पांव रखते ही जिनके हाथों में कापी-किताब, स्लेट, पेंसिल होना चाहिए उन हाथों में हंसिया, खुरपी, कुदाल होती और उनसे घरेलू कार्य लिया जाने लगता है। आर्थिक पिछड़ेपन एवं विपन्नता के चलते ऐसे अभिभावक बालिकाओं की कौन कहे बालकों की शिक्षा पर भी विशेष ध्यान नहीं दे पाते है।

कस्बे सहित आसपास के गांवों में झोपड़ियों में रहने वाले एवं घुमक्कड़ जाति के लोग बच्चों से परम्परागत पेशा कराने में ही भला समझते है। सबसे ज्यादा दुर्दशा तो बालिकाओं की देखने को मिलती है। बांस की डलिया, बीड़ी बनाने, टिकुली बनाने से लेकर खेत की रोपाई, कटाई, धान की पिटाई या खेतों से घास काटने के अतिरिक्त खाना पकाने से लेकर बच्चों के मन बहलाने, मनाने का कार्य बालिकायें ही करती है। कस्बे में ठेला चलाने वाले रामनाथ, रिक्शा चलाने वाले शिव देनी, गोदाम पर बोरा ढोने वाले सुरेद्र सहित ऐसे दर्जनों लोगों के लड़के किसी तरह प्राथमिक विद्यालयों में तो जाते है किन्तु बालिकाओं ने इन विद्यालयों का मुंह तक नहीं देखा है। उनका कहना है कि लड़कियां तो दूसरे घर की धन है उन्हे पढ़ा-लिखाकर क्या होगा। वहीं अपना व्यवसाय करने वाले रामदास का मानना है कि लड़कियों को पढ़ाने लिखाने से घर परिवार में सुधार आता है। उनके अनुसार लेकिन वहीं लड़कियों को ज्यादा पढ़ा-लिखा देने से दहेज की मांग ज्यादा होती है।

रतसर खुर्द के कोल्हाड़ा मोहल्ला के लगभग 25 घरों की राजभर बस्ती में यह देखा गया है कि मात्र एक फीसदी लड़कियों ने स्नातक तक 90 फीसदी कक्षा 5 से 8 तक तथा 9 फीसदी इण्टर तक शिक्षा ग्रहण की हैं। यही हाल अन्य मुहल्लों का भी है। कई ग्रामीणों ने बताया कि खराब आर्थिक स्थिति होने से बालिकाओं की शिक्षा तो प्रभावित हो ही रही है विद्यालयों की कमी या गांवों से दूरी पर स्थित होना भी एक कारण बनकर उभरा है। पूरे गड़वार ब्लाक में कहीं भी बालिका इण्टर या डिग्री कालेज नहीं है। कस्बे से 5 किमी दूरी पर स्थित जगदेवपुर, मसहां, अरईपुर, पखनपुरा, सिकरिया, पचखोरा सहित दर्जनों गांव है जहां हाईस्कूल या इण्टर तक की शिक्षा के लिए बालिकाओं को पैदल या अन्य साधनों से आना पड़ता है। इससे भी बालिकाओं की शिक्षा प्रभावित होती है। कई अभिभावकों का कहना है कि एक तो वैसे ही शिक्षा महंगी होती जा रही है दूसरी तरफ बालिकाओं के आने-जाने की समस्या गंभीर बनी हुई है।

कस्बे के व्यवसायी मुन्ना प्रसाद गुप्ता का कहना है कि शिक्षा के महंगा होने एवं दहेज की कुत्सित प्रवृत्ति के चलते लड़कियों की शिक्षा प्रभावित हो रही है। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि समाज के लोग अपनी सोच में परिवर्तन लायें तथा लड़के एवं लड़कियों में भेद न करते हुए दोनों के प्रति समभाव रखें वरना कानून एवं आरक्षण से महिला समाज का कोई भला होने वाला नहीं है।

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