Thursday, August 20, 2009

नरेगा: बहती गंगा में हाथ धो रहे प्रधान व जॉब कार्डधारी !

बलिया । राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना (नरेगा) केन्द्रीय सरकार की अति महात्वाकांक्षी योजना है जिसके तहत गांव के अकुशल श्रमिकों को साल में सौ दिन रोजगार के अवसर सुलभ कराना है। इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण विकास के साथ ही साथ गांव में ही खेती से खाली समय में मजदूरों को काम मुहैया कराना है ताकि गांवों से श्रम के पलायन को रोका जा सके और गांव देहात भी विकसित व खुशहाल बन सकें। नरेगा में धांधली न हो और श्रम व पूंजी का संतुलन बना रहे इसके लिए कानूनन व्यापक प्रबंध किए गये है। ग्राम पंचायत में सचिवों के अलावा ग्राम रोजगार सेवक का पद सृजित किया गया है जो जॉब कार्ड पर कार्य अंकन, मस्टर रोल भरने से लेकर अन्य सभी कागजात अद्यतन दुरूस्त रखेंगे। जिलाधिकारी को इसके लिए सीधे जिम्मेदार बनाया गया है ताकि जनपद स्तर पर कार्यो का सही और वास्तविक सम्पादन हो सके। नरेगा के तहत प्रति जॉब कार्ड धारक को प्रतिदिन 100 रुपये मजदूरी देनी है। एक परिवार को साल में सौ दिन काम यानि एक परिवार में 10 हजार रुपये सालाना का कार्य देना है। इसके लिए ग्रामीण स्तर पर गांव की खुली बैठक में तैयार कार्ययोजना पर वरीयता के क्रम में काम कराए जाने हैं। इनमें 11 बिन्दुओं पर प्रमुखता से कार्य कराए जाने हैं। सड़क, पुलिया, खडं़जा के अलावा जल संरक्षण हेतु जलाशय निर्माण व पर्यावरण संरक्षण हेतु पौधरोपण कार्यक्रम को भी वरीयता देनी है। इसके साथ ही अनुसूचित जाति के लघु सीमान्त किसानों के खेतों की मेड़बंदी, पौधरोपण व सब्जी उद्पादन आदि से भी इसे आच्छादित किया जा सकता है। इससे बडे़ पैमाने पर कार्य कराए जा सकते है। कार्य योजना के अनुसार काम कराकर मस्टर रोल भरकर व अन्य कागजात दुरूस्त कर डिमाण्ड करने में नरेगा से बडे़ कार्य हेतु धन आवंटित हो सकता है। इतने स्पष्ट दिशा निर्देश व पैनी दृष्टि के बाद भी इस महत्वाकांक्षी योजना की शिकायतें मिल रही है। कई स्थानों पर प्रधानों द्वारा अपने लगुए-भगुए के जॉब कार्ड बनवाकर मनमाना काम करवाना, मनमाना जॉब कार्ड, मस्टर रोल भरने की शिकायतें आम हैं। इसके साथ ही तालाब खुदाई आदि का कार्य जेसीबी मशीनों से कराकर स्टीमेट के अनुसार श्रम दिवस दिखाकर धन का बंदरबांट करने की शिकायतें भी सामने आ रही है। नरेगा के तहत स्पष्ट नियम है कि आवंटित धन का 60 प्रतिशत श्रम पर और शेष 40 प्रतिशत निर्माण सामग्री पर खर्च होगा। बावजूद इसके तमाम जगहों पर यह संतुलन भी गड़बड़ाता नजर आता है। जॉब कार्ड न बनाना, जॉब कार्ड पर काम न देना, मनमानी मजदूरी देना, काम कराकर मजदूरी न देना आदि तमाम तरह की शिकायतें लगातार आ रही है।

चालू वित्तीय वर्ष में नरेगा के लिए केंद्र सरकार द्वारा 2.79 करोड़ की घनराशि प्रदान की गयी थी। पिछले सत्र में नरेगा के करीब 38 करोड़ बच गये थे। कुल धनराशि के सापेक्ष 31 जुलाई तक 24.61करोड़ की धनराशि से संबंधित कार्य पूरे किये गये। चालू वर्ष में नरेगा के तहत अब धोखाधड़ी के करीब आधा दर्जन मामले दर्ज किये गये है। इस अवधि में नरेगा जाब कार्ड धारकों ने पारिश्रमिक न मिलने पर 54 बार धरना-प्रदर्शन किया। बलिया जनपद में नरेगा संबंधी सर्वाधिक शिकायतें नगरा, सोहांव व सीयर ब्लाक से सामने आयीं। वहीं बेलहरी ब्लाक के पुरास व हनुमान के गुरवां गांव में नरेगा के कारण सामाजिक व आर्थिक परिवेश में काफी बदलाव आया है।

बेलहरी ब्लाक के प्रधान संघ के अध्यक्ष विजय शंकर उपाध्याय कहते है कि नरेगा के तहत काम कराने में प्रधानों के समक्ष भी कई तरह की समस्याएं है। मजदूर नियमत: कार्य नहीं करते। इसकी स्टीमेट के अनुसार तय मानव दिवस से अधिक श्रम दिवस लगता है और इसमें प्रधान की किरकिरी होती है। इसी तरह निर्माण सामग्री का दाम भी अत्यधिक बढ़ जाने से संतुलन बिगड़ जाता है और व्यवहारिक कठिनाई पैदा होती है। बिगहीं के प्रधान छितीश्वर तिवारी उर्फ भूलू प्रधान ने बताया कि नरेगा के कार्यो में मिट्टी की समस्या आडे़ आती है। जिन आवश्यक जगहों पर मिट्टी की आवश्यकता है और पास में मिट्टी उपलब्ध नहीं है वहां चूंकि अन्य संसाधन अनुमन्य नहीं हैं अत: जॉब कार्डधारी मजदूरों से उतनी दूरी की मिट्टी ढुलाई महंगी और अव्यवहारिक है और इसमें प्रधान को जलालत उठानी पड़ती है। इन्हीं सब कठिनाइयों को देखते हुए प्रधान संघ सोहांव ने बीडीओ के माध्यम से संदेश भेजा है कि नरेगा का कार्य प्रधानों से हटाकर सचिव और अवर अभियंता से कराया जाए और प्रधानों को इससे बरी कर दिया जाये। इसी तरह क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के माध्यम से इस योजना में कराए जाने वाले कार्यो में जिच खड़ी होती रहती है। तय यह भी है कि गांव में काम न हो तो अन्य गांवों में भी जॉब कार्डधारी काम के लिए भेजे जा सकते हैं लेकिन यह भी व्यवहारिक रूप से संभव नहीं हो पा रहा है। एक तो मजदूर राजी नहीं होते दूसरे नए सिरे का विवाद खड़ा हो रहा है। यही कारण है कि इन व्यवहारिक कठिनाइयों को देखते हुए केन्द्रीय सरकार नरेगा-दो को मंजूरी दे चुकी है ताकि इन कठिनाइयों से निजात पाई जा सके।

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