Sunday, August 9, 2009

आर्थिक उदारीकरण के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन की जरूरत !

बैरिया (बलिया)। पूर्व सांसद व भाजपा के वरिष्ठ नेता वीरेद्र सिंह मस्त ने कहा है कि केंद्र सरकार की आर्थिक उदारीकरण नीति के दुखदायी परिणाम सामने आएंगे। स्वदेशी आंदोलन से जुड़े लोगों ने बार-बार आने वाली परिस्थितियों से सरकार को आगाह किया है। बावजूद इसके इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसके दुष्परिणाम अवाम को भुगतने पड़ेगे।

श्री मस्त क्रांति दिवस के अवसर पर रविवार को सोनबरसा शीत गृह पर पत्रकारों से रूबरू थे। कहा चुनावों में धन के प्रभाव को निर्वाचन आयोग नहीं रोक पा रहा है। फलस्वरूप धन के प्रभाव से बनी विधायिका का कार्यपालिका पर नैतिक नियंत्रण समाप्त हो गया है। इस चिंता से कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने गांधी शांति प्रतिष्ठान दिल्ली में बैठक की जिसमे तय किया गया कि इस देश में पुन: स्वदेशी आंदोलन खड़ा करने की आवश्यकता इस मुद्दे पर दिख रही है। इसके लिए एक पांच सदस्यीय सर्वे टीम (इलेक्शन वाच) बनी। जो उत्तर प्रदेश के 10 लोक सभा क्षेत्रों का सर्वे करेगी और 25 सितम्बर को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। इसके बाद दो अक्टूबर को एक सम्मेलन होगा जिसमें इस रिपोर्ट पर व्यापक चर्चा होगी। श्री मस्त ने देश के अरबपति सांसदों के खिलाफ भी जमकर भड़ास निकाली और कहा कि देश की गरीबी को दूर करने के लिए ठोस नीतियां बननी चाहिये।

पूर्व सांसद ने बताया कि भारत सरकार ने अर्जुन सेन गुप्त आयोग बनाया था जिसने यह बताया था कि इस देश के नब्बे करोड़ लोग रोज मात्र 20 रुपये कमा पाते है और 10 हजार लोग ऐसे है जो प्रतिदिन 20 लाख रुपये खर्च करते है। नब्बे के दशक में सात खरबपति थे और अब 62 खबरपति हो गए है। रिपोर्ट यह बताती है कि धनवान लोग और अधिक धनी तथा गरीब लोग और अधिक गरीब होते जा रहे है। इस सिलसिले पर रोक लगनी चाहिये जो स्वदेशी आंदोलन से ही सम्भव है।

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