Saturday, September 26, 2009

तब से देवी दरबार में जलता आ रहा साह परिवार का दीपक !

बलिया। मां दुर्गा की महिमा अपरम्पार है। उनकी कृपा होने पर लंगड़ा भी दीवार फांद लेता है, गूंगा बोलने लगता है, अंधा देखने लगता है और निर्बल सबल हो जाता है। कुछ इसी तरह की घटना ब्रह्माईन गांव में लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व घटी थी। गांव के ही एक निर्बल व्यक्ति ने मां की आराधना कर शक्ति हासिल की थी। इसके बदले में उसने देवी मां के मंदिर में रोजाना दीपक जलाने का वादा किया था। इस परम्परा का पालन आज भी उसकी चौथी पीढ़ी श्रद्धा व विश्वास के साथ कर रही है। मंदिर के बदले स्वरूप के साथ ही हालांकि परम्परा में भी बदलाव हुआ जिसके फलस्वरूप उसके परिजन मा के नाम पर घर पर ही दीपक जलाते हैं लेकिन नवरात्र के दिनों में इसी परिवार का दीपक आज भी मंदिर में मां के चरणों के पास जलता है।

किंवदंतियों के अनुसार लगभग डेढ़ सौ साल पूर्व इस क्षेत्र में नट विरादरी का एक पहलवान आया और कुश्ती लड़ने के लिए पहलवानों को ललकारने लगा लेकिन कोई उससे मुकाबले को तैयार नहीं हुआ। धीरे-धीरे वह ब्रह्माईन गांव में भी पहुंच कर वहां के लोगों को ललकारने लगा। उसके आतंक से गांव में सन्नाटा पसर गया। उसकी चुनौती गांव के रेखा साह को बर्दाश्त नहीं हुई। वह घर से निकलकर आदि शक्ति मा ब्रह्माणी देवी के मंदिर में पहुंच गया। वहां देवी के सामने इलाके की लाज व सम्मान के लिए ताकत व हिम्मत देने की मंशा लिये आराधना करने लगा। बताते हैं कि मां के आशीर्वाद से रेखा साह के अंदर एक अद्भुत शक्ति का एहसास हुआ। साह ने मां से वादा किया कि अगर वह इस जंग में नट पहलवान को मात दे देगा तो आपके दरबार में प्रतिदिन दीपक जलायेगा। फिर क्या था शरीर से निर्बल रेखा साह सबल हो गया। मंदिर से निकल कर वह सीधे नट पहलवान के पास पहुंचा और उसे ललकारने लगा। हालांकि गांव वालों ने उसे नट पहलवान से हाथ न मिलाने की सलाह भी दी लेकिन उसके ऊपर कोई असर नहीं हुआ। यह बात उस क्षेत्र में जंगल में लगी आग की तरह फैल गयी। मुकाबले को देखने के लिए दूर-दराज के पहलवान भी आ धमके। देवी मां के आशीर्वाद से रेखा साह ने नट पहलवान को धूल चटा दी। इसके बाद से साह परिवार मां के दरबार में प्रतिदिन दीपक जलाने लगा। रेखा साह के बाद जूठन, जगदीश और मौजूदा समय में विजय साह ने चौथी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हुए इस परम्परा को जारी रखा है।

इस परिवार के विजय गुप्ता बताते है कि दस वर्षों से मंदिर में आये बदलाव से इस परम्परा पर भी असर पड़ा है। जगमगाती रौशनी के बीच दीपक का महत्व नहीं रह गया। ऐसे में अपने घर में ही मां के नाम पर दीपक जलाने की व्यवस्था की गयी है लेकिन आज भी नवरात्र के दिनों में मां के दरबार में मेरे ही खानदान का दीपक सरसों के तेल या शुद्ध घी से जलता है। दस वर्ष पूर्व इस दीपक का काफी महत्व था। मा की महिमा का बखान करते यह परिवार कभी नहीं थकता। इनका मानना है कि देवी की कृपा से ही उनके कुल पुरुष ने गांव का मान-सम्मान रखा था।

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