Thursday, September 17, 2009

मानव जीवन का मूल दर्शन है हिन्दी भाषा : डा. रामकृष्ण !

बलिया। सम्पूर्ण मानव जाति के जीवन का मूल दर्शन हिन्दी भाषा से ही प्रस्फुटित होता है। हिन्दी भारतीय संस्कृति की प्राण है तथा इस भाषा में सजीवता, ममता तथा उदारता का जो भाव समाहित है इसी विशेषता से आज हिन्दी ने पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बना ली है।

उपर्युक्त उद्गार स्थानीय मथुरा स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राचार्य डा. रामकृष्ण उपाध्याय ने हिन्दी दिवस पखवारा के तहत विद्यालय में आयोजित गोष्ठी में व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि सम्पूर्ण राष्ट्र की अपनी भाषा होती है। राष्ट्र की पहचान भी उसी भाषा, परम्परा, संस्कृति एवं साहित्य से होती है। ऐसे में हमें हिन्दी के प्रति समर्पण का भाव रखने का संकल्प लेना होगा क्यों कि अपने इस मातृभाषा से ही हम राष्ट्र का मस्तक ऊंचा कर सकते है।

डा. रामानुज मिश्रा, डा. उर्मिला सिंह तथा हिन्दी के विभागाध्यक्ष डा. बब्बन राम ने कहा कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है। जिस प्रकार से माता कुमाता नहीं हो सकती इसी प्रकार से हिन्दी भाषा हमारी सदैव और हर कदम पर भाषा के रूप में रक्षा करती है किन्तु हमें इस भाषा के प्रति सेवा, समर्पण तथा प्रचार के भाव को अपना कर राष्ट्र को नई दिशा देने का संकल्प लेना चाहिए। कार्यक्रम का शुभारम्भ छात्र राजेन्द्र सिंह यादव द्वारा प्रस्तुत वन्दना से हुआ। इस मौके पर डा.चन्द्रदत्त दूबे, डा.दशरथ सिंह, डा.रामकुमार सिंह, राधा कृष्ण सिंह, डा. धर्मात्मानन्द आदि उपस्थित रहे।

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