हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहा दम था, मेरी कश्ती वहीं डूबी जहां पानी भी कम था, यह पंक्तियां जिला पंचायत के लगभग सभी हारे हुए प्रत्याशी चुनाव प्रचार, मतदान एवं मतगणना के दिनों को याद कर गुनगुना ले रहे हैं। जी हां यह दास्तां एक दम सच है जिला पंचायत सदस्य पद के जिन प्रत्याशियों ने छोटे, मझोले एवं बड़े मठाधीशों पर भरोसा किया उन्हीं के द्वारा धोखा दिया गया है तथा जिला पंचायत सदस्य बनने का इनका सपना चकनाचूर होकर रह गया है। ऐसे में चोट खाये प्रत्याशियों के द्वारा मठाधीशों की समीक्षा की जा रही है तथा उनको सबक सिखाने का भी मन बनाया जा रहा है।
विदित हो कि जिला पंचायत सदस्य पद के चुनाव का दायरा लम्बा चौड़ा होने से सम्बंधित प्रत्याशियों को मठाधीशों का सहारा लेना स्वभाविक था। ऐसा नहीं है कि सभी ने ईमानदारी से गुडवर्क नहीं किया लेकिन कुछ ऐसे जरूर रहे जिहोंने जो मांगा वह मिला, बावजूद इसके वे प्रधानी चुनाव से हट कर कुछ भी नहीं किये तथा कुछ ले देकर चुप ही बैठ गये। हो सकता है कुछ प्रत्याशी सब कुछ भूल कर अगले चुनाव का इन्तजार करें किन्तु ऐसे प्रत्याशी भी हैं जो अपने खर्चे जोड़ घटा धोखेबाज मठाधीशों व समर्थकों को सबक सिखाने की भी जुगत बैठा रहे हैं। फिलहाल वे अपनी कहानी बयां कर मठाधीशों को सामाजिक रूप से क्षति पहुंचाने का प्रयास तो कर ही रहे है।
दोस्त- दुश्मन को लेकर खींचने लगीं लकीरें
बीते दिनों सम्पन्न त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में रसड़ा ब्लाक के 65 ग्राम प्रधानों, 85 क्षेत्र पंचायत सदस्यों तथा 3 जिला पंचायत सदस्यों के सिर सेहरा बंध चुका है। अब हार जीत के मद्देनजर ग्रामीण अंचलों में दोस्त दुश्मन को लेकर लकीरे खींचने लगी हैं।
विदित हो कि सम्पन्न हुए चुनावों में जम कर मुर्गा-दारू, बाहुबल व धनबल का जम कर प्रयोग किया गया और ऐसा करने वाले प्रत्याशी कहीं जीते तो कहीं इस प्रयास के बाद भी हार गये हैं।
ऐसे में बौखलाए हारे प्रत्याशी फला व्यक्ति दुश्मन और फलां दोस्त है की सूची तैयार कर अपना गुस्सा उतारने मे लगे हैं। वहीं कुछ गांवों में धोखेबाज समर्थकों की भी खबर ली जा रही है जिसको लेकर अधिकतर गांवों में तनाव बना हुआ है।
Saturday, November 6, 2010
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