Monday, May 18, 2009

युवाओं में नशाखोरी की बढ़ती लत समाज के लिए घातक !

बलिया। समाज में तेजी से फैल रही नशे की लत का सर्वाधिक शिकार युवा वर्ग ही हुआ है। बीयर से लेकर कच्ची देशी एवं अंग्रेजी शराब को पीने का आदी हो चुका युवा वर्ग अब ताड़ी की ओर तेजी से आकर्षित हुआ है। बीयर एवं शराब का सुरूर पाने की चक्कर में लोगों में ताड़ी पीने की ललक बढ़ गयी है।

कस्बे सहित आसपास के क्षेत्रों में ताड़ी के अड्डे भोर से ही गुलजार हो जा रहे है। कोई एक लीटर तो कोई तीन-चार लीटर तक ताड़ी खींच जाता है। इन दिनों एक लीटर ताड़ी बारह रुपये में पड़ रही है। पीने वालों में से अधिकांश का मानना है कि यह स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है तथा शराब से सस्ती भी पड़ती है। कई ताड़ी विक्रेताओं ने बताया कि पीने वालों में सर्वाधिक संख्या युवा वर्ग की है जो शौकिया पी रहे है, ऐसे लोग पांच लीटर तक ताड़ी प्रतिदिन पी जाते है। वैसे पीने वालों के लिए काफी सस्ती इस ताड़ी को उतारने की प्रक्रिया काफी जटिल है। मार्च के महीने से ही पेड़ों पर ताड़ी बननी शुरू हो जाती है। पेड़ों की टहनियों को करीने से तराशकर कलम की जाती है जिसके नीचे मिट्टी के विशेष बर्तन लबनी को बांधा जाता है। ताड़ी उतारने वाले ज्यादातर मजदूर बिहार व झारखण्ड प्रदेश से आये हुए है। लबनी में ताड़ी बूदं-बूंद करके जमा होती है। उतारने वालों का कहना है कि बांझ वृक्ष की ताड़ी सबसे अच्छी होती है। ताड़ वृक्ष के मालिकों के पास इन दिनों ताड़ी ही कमाई का जरिया बनी हुई है। साल में एक बार मात्र कुछ महीने ही इन वृक्षों से कमाई होती है।

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