Sunday, May 24, 2009

मनुष्य अपने कर्मो से प्राप्त कर सकता है अलौकिक सम्पदा !

बलिया। श्री हरिवंश बाबा इण्टर कालेज पूर के प्रबंधक के आवास पर चल रही रामकथा के तीसरे दिन मानस मर्मज्ञ पर अमरनाथ त्रिपाठी ने कहा कि संत गोस्वामी तुलसी दास ने रामचरित मानस के अन्दर भरत के चरित्र का जो उदाहरण प्रस्तुत किया है वह अपने आप में अद्वितीय है। दशरथ के मरण का समय हो, राज्याभिषेक की बात हो या राम बन गमन की बात हो। इस समय में भरत ने अपने चरित्र का जो उदाहरण प्रस्तुत किया वह आज के समाज के लिए अनुकरणीय है। मनुष्य अपने कर्म के अनुसार ही अलौकिक सम्पदा को प्राप्त कर सकता है। वह ब्राह्मण सोचनीय है जो वेद से विहीन हो। वह क्षत्रिय सोचनीय है जो नीति नहीं जानता। वह वैश्य सोचनीय है जो ज्ञान में अहंकार रखता है। वह ब्रहमचारी जो अपने गुरु के आदेश का पालन नहीं करता है व जो ईश्वर की आराधना नहीं करता वह जीव भी सोचनीय है। 'अनुचित उचित विचार तजि जे पालाहि पितु वैन। ते भाजन सुख सुजश के वसंहि अमरपति ऐन॥' द्वारा भरत को समझाने का प्रयास किये कि तुम भी अपने परमपूज्य पिता के आदेश का पालन करते हुए इस राज्य के भोग का पालन करो लेकिन गुरु वशिष्ठ के लाख समझाने के बाद भी राज्य सुख को दर किनार करते हुए स्वयं अपने स्वजनों के साथ भरत चित्रकूट की ओर प्रस्थान कर जाते हैं और कहते हैं कि राजा तो भगवान श्रीराम ही होंगे मैं तो मात्र उनका अनुचर हूं। भरत ने माताओं को सती होने से भी रोक दिया था। इस प्रकार भरत ने अपने चरित्र को समुद्व मंथन से निकले चौदह रत्‍‌नों के समान सिद्ध किया है।

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