Friday, May 22, 2009

सांसारिक दु:खों की औषधि है भगवन्नाम: पं. अमरनाथ !

बलिया। इस संसार में परनिन्दा से बढ़कर कोई पाप नहीं है। परनिन्दा करने वाले को हजारों वर्षो तक मेंढक की योनि प्राप्ति होती है। श्री हरिवंश बाबा इण्टर कालेज पूर के प्रबंधक प्रहलाद सिंह के यहां चल रहे पंच दिवसीय मानस कथा के दूसरे दिन मानस मर्मज्ञ पं. अमरनाथ त्रिपाठी ने उपरोक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि अगर निन्दा ही करनी है तो अपने अन्दर पैदा हुए विकारों, दुर्गुणों की करो। कहा कि जिसको हम धारण करते हैं वही धर्म है। मानस में भरत का जो चरित्र है उसकी व्याख्या करते हुए स्वयं वशिष्ठ जी ने इसकी सम्पुष्टि की और कहा कि भरत राम-प्रेम की प्रतिमूर्ति है। समुंद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्‍‌नों का रूपक देते हुए व्यास जी ने भी कहा कि भरत का राम प्रेम ही चौदह रत्नों में प्राप्त अमृत था। प्रेम अमिय मंदर विरह, भरथ पयोधि गम्भीर। आगे उन्होंने कहा कि इस संसार में परनिन्दा से बढ़कर दूसरा कोई पाप नहीं है। परनिन्दा करने वाले को हजारों वर्षो तक मेंढक की योनि प्राप्त होती है। अगर निन्दा ही करनी है तो अपने अंदर पैदा हुए विकारों दुर्गुणों की निंदा करो। गुरु, शास्त्र एवं वेद के वचनों की अवज्ञा न करते हुए लिया गया भगवन्नाम सांसारिक दुखों की औषधि है। चूंकि कौशल्या ज्ञान शक्ति, सुमित्रा उपासना शक्ति एवं कैकेयी क्रिया शक्ति का प्रतीक है। अत: राम का कैकयी के प्रति अधिक प्रेम क्रिया शक्ति का तथा भरत का कौशल्या एवं सुमित्रा के प्रति अधिक प्रेम ज्ञान एवं उपासना शक्ति का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि आज के परिवेश में हम यदि मानस के पात्रों का अनुकरण करे तो यह समाज जो भ्रष्ट रास्ते का अनुकरण कर रहा है उससे बचा जा सकता है। भाई का भाई के प्रति प्रेम, पुत्र का पिता के प्रति प्रेम, मित्र का मित्र के साथ संबंध हम मानस के पात्रों से उनके चरित्र का अनुकरण करते हुए समाज को सुख एवं समृद्धि के रास्ते पर अग्रसर किया जा सकता है।

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