Wednesday, April 1, 2009

भगवती ने सुरथ को दिया था अभयदान

बलिया। जिला मुख्यालय से पांच किमी दूर उत्तर दिशा में अवस्थित ग्राम शंकरपुर में विद्यमान मां भगवती का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। भगवान शंकर की शांकरी कही जाने वाली भगवती ने राजा सुरथ को अभयदान देकर उनके खोये राज्य व प्रभुत्व को वापस किया था। मां की महिमा से सिंहासन पाये राजा सुरथ ने भव्य मंदिर का निर्माण कराया। शारदीय व चैती नवरात्र में मां के मंदिर में श्रद्धालुओं का रेला लगता है। श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मां भगवती की आराधना करने वाले भक्तों की हर मनोकामनाएं पूर्ण होती है। यह जनपद का सिद्धपीठ भी है। मां भगवती का वर्णन दुर्गा सप्तशती के कवच प्रकरण में कर्णमूले तू शांकरी नाम से आया है। अर्थात शंकरपुर के समीप होने से शांकरी नाम स्थान विशेष से दिया गया है।

शास्त्रीय आधार पर जहां तक इस मंदिर की स्थापना का प्रश्रन् है तो मार्कण्डेय पुराण के आधार पर यह राजा सुरथ के द्वारा स्थापित किया हुआ सिद्ध होता है।

पूर्वकाल में सुरथ नाम के राजा थे जो चैत्र वंश में उत्पन्न हुए थे। उनका समस्त भू मण्डल पर अधिकार था। उस समय उनका शत्रुओं के साथ संग्राम हुआ। युद्ध में उनसे परास्त सुरथ का प्रभाव नष्ट हो चुका था। इसलिए वे शिकार खेलने के बहाने घोड़े पर सवार होकर वहां से घने जंगल में चले गए। एक दिन उन्होंने वहां विप्रवर मेधा ऋषि के आश्रम के निकट एक वैश्य को देखा और उससे पूछा भाई तुम कौन हो? यहां तुम्हारे आने का क्या कारण है? इस पर वैश्य ने उन्हे प्रणाम करके बड़े विनीत भाव से कहा हे राजन मैं धनियों के कुल में पैदा हुआ एक वैश्य हूं पर मेरे धन के लालच में मेरी पत्‍‌नी और पुत्रों ने मुझे घर से निकाल दिया है। इसके बाद राजाओं में श्रेष्ठ सुरथ और वह समाधि नामक वैश्य मेधा मुनि के कहने पर मां जगदम्बा के दर्शन के लिए नदी के तट पर रहकर तपस्या करने लगे। इस पर प्रसन्न होकर चण्डिका देवी ने प्रत्यक्ष दर्शन देकर दोनों को मनोवांछित वर दिया। देवी का वरदान पाकर राजा सुरथ अपने राज्य को प्राप्त करने की इच्छा से वहां से चल दिए और वहां जाकर देवी की कृपा से अपना पराक्रम दिखाकर वह पुन: अपना राज्य प्राप्त कर लिया। परंतु राज्य प्राप्ति के पश्चात वह मेधा ऋषि के आश्रम को और उस नदी तट को भूले नहीं थे अत: वह बहुत धन लेकर पुन: आश्रम पर पहुंचे। ऋषि आश्रम के निकट एक बहुत बड़ा ताल था जिससे एक नदी निकलती थी। कहा जाता है कि राजा सुरथ उसी क्रम में उस ताल के निकट भी कुछ काल तक रहे जो उन्हीं के नाम से सुरहाताल से प्रसिद्ध है। बाद में उन्होंने सुरहाताल के चारों तरफ कुल पांच मंदिरों की स्थापना की जिनमें शंकरपुर का भवानी मंदिर, ब्रह्माइन देवी का मंदिर, असेगा का शोकहरणनाथ मंदिर, अवनीनाथ मंदिर तथा बालखण्डीनाथ का मंदिर शामिल है। राजा सुरथ का यह प्राचीन मंदिर द्वापर युग से अभी तक अपनी पहचान बनाये हुए है।

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