Friday, March 27, 2009

भगवती की आराधना ही एक मात्र सहारा

बलिया।

'शशि सूर्ये गजा रूढ़े, शनि भौमे तुरंग में, गुरु शुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्तिता।''

इस बार के वासंतिक नवरात्र की प्रतिपदा शुक्रवार को पड़ी है। उपरोक्त श्लोक के अनुसार मां भगवती की सवारी डोली है जिसका आशय यह है कि समाज में लूट, हत्या तथा नाना प्रकार के अनिष्टों का बोलबाला रहेगा जिससे बचने का एक मात्र उपाय मां भगवती की आराधना है। इनकी पूजा अर्चना से ही समाज में व्याप्त बुराइयों का नाश होगा। दुर्गा मंदिर जापलिनगंज के पुजारी श्रीकांत चौबे कहते है कि समस्त भक्त मां जगदम्बा की पूर्ण मनोयोग से आराधना, दान-पुण्य अथवा जगत जननी मां भगवती को समर्पण भाव से भजें तो उनका तथा उनके परिवार की मां सर्वदा रक्षा करती रहेगी। इनकी पूजा अर्चना की बात तो अनेक पुराणों में भी कही गयी है। यथा पद्म पुराण के सृष्टि खण्ड में पुलत्स्य ऋषि कहते है कि दुर्गा पूजन से वह फल प्राप्त होता है जो तीर्थ दान करने से। एक हजार अश्वमेघ तथा एक सौ वाजपेय यज्ञ का फल भी भगवती की पूजा के लाखवां भाग के बराबर भी नहीं है। पुलत्स्य ऋषि कहते हैं कि जो निरन्तर दुर्गा का व्रत तथा पूजा करता है वही मुनि है वही तपस्वी है वही तीर्थ है। जो नाना प्रकार के पुष्प, धूप, दीप, प्रसाद आदि से भवानी की पूजा करता है वही सच्चा योगी है तथा मुक्ति उसके हाथ में है। जो व्यक्ति पूर्णिमा, नवमी, अष्टमी को दुर्गा अर्चना करता है उसे वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। शुक्ल पक्ष की अष्टमी एवं नवमी तथा चतुर्दशी को जो तीनों समय पूजन करता है वही देवी लोक प्राप्त करता है। नवमी को व्रत रहकर जो भक्त भगवती की पूजा करते हैं उसे अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

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