Monday, March 30, 2009

खरीद की देवी: दिन में तीन बार रूप बदलती है प्रतिमा

बलिया। वासंतिक नवरात्र शक्ति की आराधना का द्योतक है। इन नौ दिनों में भक्त व्रत, उपवास तथा आहार-विहार के संयम द्वारा अपने विचारों का शुद्धिकरण और काया कल्प करता है। इस प्रकार वह शक्ति संचय कर अपनी काया को शिवरूप में परिणत करता है। इसलिए इस काल को शक्ति का आराधना पर्व कहा जाता है। इन नौ दिनों में आदि शक्ति के नौ रूपों की आराधना की जाती है। शक्ति के इन नौ रूपों में मां दुर्गा का स्थान प्रमुख है। क्योंकि वे दुष्टों की संहारकर्ता, अत्याचारियों का विनाशकर्ता हैं। खरीद की देवी भी इसी कड़ी में है जो भक्तों की मनोकामना पूर्ण कर उन्हे अभीष्ट फल प्राप्त कराती है। वैसे तो देश के विभिन्न स्थानों पर मां दुर्गा के शक्तिपीठ है जहां जाकर भक्त मां के चरणों में नतमस्तक हो उनसे आशीर्वाद की कामना करते है किन्तु क्षेत्र के खरीद गांव में स्थित मां का मंदिर भक्तों की आस्था का एक बड़ा केंद्र है। यहां पूर्व प्रधानमंत्री स्व.इन्दिरा गांधी सहित राज्यपाल, मंत्री तथा बड़े अधिकारी भी मां के दरबार में आकर उनकी चौखट पर मत्था टेक चुके है। भक्तों के विश्वास और आस्था का अटूट केंद्र होने का कारण यह है कि जिन राजा सुरथ द्वारा मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित किये जाने का उल्लेख पुराणों में मिलता है, वह मूल प्रतिमा यही है। प्रतिमा की स्थापना कराने से पूर्व राजा सुरथ ने मिट्टी का एक स्तूप बनाकर उसी को मां दुर्गा की मान्यता प्रदान करते हुए उनकी पूजा अर्चना किया था। वह मिट्टी का स्तूप आज भी मूल मंदिर से करीब दो सौ मीटर दूर उत्तर तरफ स्थित है। उस समय वह समूचा इलाका जंगली था तथा सरयू नदी की धारा उससे सटकर प्रवाहित होती थी जिसका निशान आज भी बाकी है। मेधा ऋषि का आश्रम भी यहीं था। यह अलग बात है कि अब सरयू की धारा वहां से उत्तर तरफ चली गयी है। सुरथ द्वारा मिट्टी का स्थापित स्तूप तथा उसके निकट ही मां दुर्गा की प्रतिमा के होने का विश्वास भक्तों को इस मंदिर का दर्शन करने के लिए दूर-दूर से खिंचा चला आता है। इस प्रतिमा की कुछ विशेषतायें भी है जो इस मंदिर को अन्य मंदिरों से अलग पहचान देती है। यथा प्रात: बेला में युवावस्था, दोपहर में प्रौढ़ तथा सायं वृद्धावस्था की स्पष्ट झलक प्रतिमा के मुख पर दिखायी पड़ती है।

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