Tuesday, April 5, 2011

स्वत: प्रस्फुटित हुई अग्नि और राख हो गया सब कुछ !

प्रेत बाधा से पीड़ित ही नहीं बल्कि आम लोगों के लिए भी आस्था का केन्द्र बने हरखू ब्रह्म स्थान पर दर्शन पूजन करने वालों का तांता लगने लगा है। बैरिया-बलिया मार्ग पर पांडेयपुर ढाला से लगभग एक किमी उत्तर दयाछपरा दियारे में हरखू ब्रह्म बाबा के समाधि स्थल पर उनका मंदिर बना है, जहां एक विशाल वट वृक्ष है और इस मंदिर के इर्द-गिर्द अनगिनत ब्रह्म स्थान व चौरे बने हुए है। इन ब्रह्म स्थानों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। जानकार लोग हरखू ब्रह्म बाबा के इतिहास को लगभग डेढ़ हजार वर्ष पुराना बताते है। कुछ जानकारों का कहना है कि हरखू ब्रह्म बाबा कालांतर में हरखू पांडेय थे, जो डुमरांव महाराज के कुल पुरोहित थे। राजा को कोई संतान नहीं थी। हरखू पांडेय ने राजमहल में पूजा व यज्ञ का अनुष्ठान कराया और उसके एक वर्ष बाद डुमराव महाराज को पुत्ररत्‍‌न की प्राप्ति हुई। महाराज बहुत खुश हुए और राजमहल के पास ही अपने पुरोहित के लिए भव्य महल बनवा दिया।

समय बीतने के साथ ही डुमरांव महाराज का पुत्र जवान हुआ और उसकी शादी हुई। जब उसकी दुल्हन आई तो बगल में पुरोहित का भव्य महल देखकर पूछा कि यह राजमहल से भी भव्य महल किसका है। राजकुमार ने कहा कि यह महल कुल पुरोहित का है। दुल्हन ने जिद ठान ली कि राजमहल के बगल में इससे भव्य महल नहीं रहना चाहिए, इसे गिरा दिया जाय। राजकुमार ने महाराज से पत्‍‌नी की जिद बताई। राजा इसके लिए राजी नहीं हुए। राजा व राजकुमार में इस बात को लेकर मतभेद हो गया और काफी दिनों तक बात नहीं हुई। अन्तत: राजा ने राजकुमार को राजगद्दी सौंप कर संन्यास ले लिया। राजा बनते ही राजकुमार ने अपने पुरोहित के भव्य महल को ढहाने का आदेश दे दिया। इसे सुन हरखू पांडेय ने अन्न जल त्याग अपने भवन में अपने को कैद कर लिया। यह सुन डुमरांव महाराज की पुत्री अपने ससुराल से अपने पिता के पुरोहित से मिलने आई और महारानी की जिद को बताया। हरखू पांडेय ने शाप दिया कि डुमरांव महाराज के यहां अब कोई पुत्र नहीं होगा और बेटी के पुत्र ही राज सिंहासन पर बैठेगे। इतना कहने के बाद स्वत: उनके शरीर से अग्नि पैदा हुई और हरखू पांडेय व उनका भवन जलकर राख हो गया।

लोग बताते है कि डुमराव में आज भी उस स्थान की मिट्टी काली राख जैसे रंग की है। बाद में डुमरांव महाराज की लड़की का लड़का जब डुमरांव की राजगद्दी पर बैठा तो अपने राज्य के कई स्थानों पर हरखू ब्रह्म का मंदिर बनवा दिया जिसमें एक दयाछपरा दियारा का यह स्थान है। कुछ लोग हरखू ब्रह्म को गाजीपुर के पचोत्तर क्षेत्र का बताते है और कहते है कि हरखू व सरखू दो भाई थे जो कहीं जाते समय उस स्थान पर रुके थे, जहां आज हरखू ब्रह्म का स्थान है। वहां पड़ोस के गांव के ही कुछ लोगों ने हरखू की हत्या कर दी थी। वहीं आज ब्रह्म बाबा का स्थान बना हुआ है। हरखू की हत्या के बाद सरखू कर्णछपरा जाकर बस गए। उन्हीं के वंशज कर्णछपरा, नवका टोला व इब्राहिमाबाद में बसे है और वहा के दीक्षित राजपूत अपने कुल देवता के रूप में हरखू ब्रह्म को मानते है और हर साल वहां के लोग हरखू ब्रह्म के स्थान पर भव्य पूजन व सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कराते है। हरखू ब्रह्म का इतिहास चाहे जो भी हो किन्तु उनके दर्शन पूजन मात्र से लोगों की भलाई करने का इतिहास काफी लम्बा है। हरखू ब्रह्म परिसर में श्रद्धालुओं के अलावा प्रेत पीड़ितों की भीड़ नवरात्र में देखी जा सकती है। तत्कालीन विधायक भरत सिंह द्वारा श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए वहां एक रैन बसेरा बना दिया गया है, जिससे लोगों को रुकने आदि सुविधा उपलब्ध हो गई है।

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