मुख्यालय से करीब 17 किमी की दूरी पर स्थित सुरहा ताल में प्रकृति से लेकर (वाइल्ड लाइफ) जंगली जीव व पक्षियों तक का अनोखा समुच्चय है। करीब 2549 वर्ग हेक्टेयर में फैला यह ताल अपने अंदर अपार संभावनाओं को समेटे हुए है लेकिन शासकीय उदासीनता से यह सिमटता जा रहा है।
विशेषज्ञों के शोध में यह तथ्य आया था कि इस ताल में विभिन्न जलीय जीव, मछलियां व कीड़ों की 37 प्रजातियां निवास करती हैं। यहां नायलान के कीड़े बहुतायत में पाए जाते हैं जिन्हें विकसित कर नायलान बनाया जा सकता है। पांच किमी के एरिया में फैले इस ताल में कभी पारंपरिक धान की 32 प्रजातियों की पैदावार होती थी लेकिन 2009 के बाद से घटकर अब मात्र 13 प्रजाति ही शेष रह गई हैं। 1991 में पक्षी अभयारण्य के तौर पर घोषित इस ताल में दूरदराज से आने वाले साइबेरियन पक्षी के अलावा अन्य कई विदेशी पक्षियों का बसेरा है। इन तमाम खूबियों से भरे इस ताल को बायोटेक्नालॉजी हब के रूप में विकसित किया जा सकता है। आज बायोटेक्नालॉजी देश में उभरता हुआ क्षेत्र है जिसके लिए ये ताल सबसे उपयुक्त है। दिल्ली, बीएचयू व लखनऊ विश्वविद्यालय के विषय विशेषज्ञों की टीम ने यहां पूर्व में किए गए अनुसंधानों के बाद कई चीजों को विकसित किए जाने की रिपोर्ट दी थी लेकिन सभी ठंडे बस्ते में डाल दी गई। सरकार अगर विशेषज्ञों की रिपोर्ट व शोध के आधार पर विचार करे तो बायोटेक्नालॉजी के क्षेत्र में यहां आपार संभावानाओं की तलाश की जा सकती है।
बायोटेक्नालॉजी पार्क बनाए जाने के बाद यहां जलीय जीवों के साथ विदेशों से आने वाले पक्षियों पर शोध किए जा सकते हैं। पक्षियों के रूट आदि पर शोध के साथ ही यहां की मिट्टी व जलीय जीव, पौधे तथा विभिन्न फसलों आदि पर भी अनुसंधान किए जा सकते हैं। बीएचयू के बॉटनी विभाग के आरएस अंबष्ट, अजीत श्रीवास्तव व सिद्धार्थ सिंह ने 1999 में यहां इकोलॉजिकल स्टडी किया था जिसमें कई तथ्य सामने आए थे। टीम ने ताल में कई गतिविधियों की वजह से लगातार फैल रहे फीजियो केमिकल को यहां के पर्यावरण के लिए खतरनाक करार दिया था लेकिन इस पर गौर नहीं किया गया। आज सारे तथ्यों के बाद इसके विकास के लिए जरूरत है तो बस सरकार की नजरें इनायत की।
ताल की तलहटी में अकूत भंडार : डा.अशोक
नगर के टाउन महाविद्यालय के कृषि रक्षा व मृदा विज्ञानी डा.अशोक कुमार सिंह ने भी अपनी टीम के साथ यहां शोध किए थे। उन्होंने बताया कि झील की तलहटी में कई तरह के जीवों का भंडार है। यहां की मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, जैविक कार्बन, जस्ता, बोरान व लोहा आदि पोषक तत्वों की मात्रा काफी अधिक है। बायोटेक्नालॉजी पार्क के लिए जो भी मानक हैं वे इस ताल में पर्याप्त मात्रा में हैं। इसे विकसित किया जाए तो ताल बहुत बड़ा व्यावसायिक केंद्र भी बन सकता है।
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