Tuesday, December 14, 2010

भ्राता वही जो भाई की विपत्ति को बांटे न कि सम्पत्ति !

भाई वही है जो अपने भाई की विपत्ति को बांटे न कि पैतृक सम्पत्ति को। श्री हरिवंश बाबा इण्टर कालेज, पूर के प्रांगण में त्रिदिवसीय, कविलचक्रचूड़ा मणि महाकवि तुलसीदास कृत रामचरितमानस आधारित कथा वाचन के दौरान यह बातें पं.अमरनाथ त्रिपाठी ने कही। कथा का प्रारम्भ उन्होंने मानस नायक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की स्तुति से की।

कथा के माध्यम से उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति में मानव जीवन का उद्देश्य अध्यात्म के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति है जबकि पाश्चात्य संस्कृति भोगवादी है तथा उसका उद्देश्य अधिक से अधिक भौतिक संसाधनों की प्राप्ति है। अपने देश पर भी पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पड़ा है। यद्यपि देश में भौतिककता का विकास हुआ किंतु नैतिकता का ह्रास हुआ। मानव जीवन दुर्लभ है। जो मानव अपने धर्म, संस्कृति एवं नैतिकता की रक्षा करता है उसका जीवन धन्य है अन्यथा उसका जीवन व्यर्थ है। कथा के माध्यम से उन्होंने नवयुवकों को राम और भरत के जीवन का अनुकरण करने के लिये कहा। मानस कथा के माध्यम से उन्होंने संयुक्त परिवार की सराहना की। संयुक्त परिवार का आदर्श राम के परिवार को बताया। तमोगुणी लोभ को परिवार विघटन का कारण बताया। मंथरा तमोगुणी लोभ का प्रतीक है और कैकेयी क्रियाशक्ति की। तमोगुणी लोभ के वृत्ति से आवृत्त कैकेयी ने अधार्मिक कृत्य किया जिसके परिणाम स्वरूप राम को 12 वर्ष का वनवास हुआ। अयोध्या वीरान हो गयी तथा राजा दशरथ के पुत्र शोक से मृत्यु हो गयी। कथा के माध्यम से उन्होंने बताया कि व्यक्ति के साथ केवल उसका धर्म ही जाता है न कि उसकी धन सम्पत्ति।

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