Saturday, September 25, 2010

पितरों की श्रद्धा के साथ की गयी पूजा शीघ्र होती फलित !

हिन्दू धर्म में श्राद्ध का अत्यधिक महत्व है। भाद्र पद पूर्णिमा से आश्रि्वन कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि तक श्राद्ध पक्ष कहलाता है। क्षेत्र के शुभनथही निवासी पं.कौशल कुमार मिश्र ने बताया कि पितृ पक्ष में पितृ गणों की प्रसन्नता के लिए उनकी श्राद्ध करने की धार्मिक मान्यता है। श्राद्ध 12 प्रकार के होते है। पितृगणों की श्रद्धा-आस्था व विश्वास के साथ की गई पूजा शीघ्र फलित होती है जिससे भौतिक सुख-समृद्ध, वैभव, यश सफलता आदि प्राप्त होती है। सौभाग्य का मार्ग प्रशस्त होता है। यह पूजन कार्य कर्मकाण्डी पंडितों से करवाना चाहिए। अमावस्या तिथि को सभी पितरों का श्राद्ध करने का विधान है। श्राद्ध सम्बन्धित कृत्य मध्याह्न काल में करना उत्तम होता है और सूर्यास्त के बाद श्राद्ध करने का विधान है। श्राद्ध में मुख्य रूप से तीन कार्य किये जाते है यथा पिंडदान, तर्पण व ब्राह्मण भोजन। श्राद्ध में सम्बन्धित ब्राह्मणों को भोजन कराने की प्रथा है। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद उनको वस्त्र, पात्र व यथाशक्ति दक्षिणा देकर उनको प्रसन्न करके विदाई करना चाहिए। इसके साथ ही गौ व कौवों को भी भोजन खिलाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इन सब श्राद्ध की कृत्यों को करने पर पितृगण प्रसन्न होते है। उनसे हमें आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। पितृपक्ष में भोजन शुद्ध, सात्विक व शाकाहारी बनाया जाता है। इसमें लहसुन व प्याज वर्जित है। भोजन में मिष्ठान होना अति आवश्यक है। श्राद्ध वाले दिन सतकृत्यों की ओर मनोवृत्ति होनी चाहिए। ब्रह्मचर्य नियम का पालन करना चाहिए। दिवंगत माता-पिता व पूर्वजों की मृत्यु तिथि को श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध सम्बन्धित सभी कार्य करवाने चाहिए। श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध न होने पर व्यक्ति को नाना प्रकार के कष्ट झेलने पड़ते है। मनोकामना की पूर्ति में बाधा आती है। परिवार में कोई न कोई अस्वस्थ रहता है, संतान सम्बन्धित कष्ट रहते है, वंश वृद्धि नहीं होती। दुर्घटना व असामयिक मौत व अन्य परेशानियां परिवार में देखने को मिलती है। श्राद्ध कृत्य विधान से होने पर समस्त दोषों का निवारण होकर जीवन सुखद बनता है।

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