Sunday, September 5, 2010

.....आखिर पांच सौ एड्स के मरीज गये कहां!!

एड्स अब महानगरों का ही घातक रोग नहीं रहा बल्कि इसके मरीज गांव की झुग्गी-झोपड़ियों में भी मिलने लगे है। इसकी पुष्टि बलिया में अब तक मिले मरीज भी कर रहे है जो इसे महानगरों से लेकर यहां आये। सरकारी आंकड़ा अब 500 तक पहुंच गया है लेकिन सूत्रों के अनुसार इनकी संख्या करीब पंद्रह सौ से ऊपर बतायी जा रही है। खतरनाक बात यह कि एड्स के मरीज चिह्नित किये जरूर जाते है लेकिन बाद में उनके बारे में कोई जानकारी नहीं हो पाती। स्वास्थ्य विभाग भी ऐसे मरीजों की खोज खबर नहीं लेता। सीएमओ डा.सुनील भारती के अनुसार इसकी रोकथाम के लिए कोई टीका अभी विकसित नहीं किया जा सका है। एड्स मरीजों को जो दवा दी जाती है वह मात्र वायरस की प्रगति को रोक देता है। दवाओं के सहारे भी मरीज को 15 से 20 साल तक ही जीवित रखा जा सकता है। इस इलाज को एआरटीओ अर्थात एंटी रेट्रोवायरल ट्रीटमेंट कहा जाता है जिसके तहत मरीज को कई तरह की दवाइयां दी जाती हैं।

आईसीटीसी में अब तक पांच सौ मरीज चिह्नित

जिला चिकित्सालय के कमरा नम्बर 23 में संचालित 'एकीकृत परामर्श व परीक्षण केन्द्र' (आईसीटीसी) में अब तक पांच सौ मरीज चिह्नित किये गये है। यहां एड्स के बारे में नि:शुल्क परामर्श, जांच व दवा की व्यवस्था है। इस केन्द्र के परामर्शदाता विजय तिवारी बताते है कि एड्स का परीक्षण मरीज के खून की जांच से होता है। पुरुष को परामर्श देने के लिये पुरुष परामर्शदाता तथा महिला को परामर्श देने के लिये महिला परामर्शदाता की व्यवस्था है। इसके अलावा जिला चिकित्सालय के यौन रोग निदान केन्द्र एसटीडी सेंटर पर भी परामर्श की व्यवस्था है।

एड्स क्या है?

एड्स चार अक्षरों से बना है एआईडीएस अर्थात एक्वायर्ड इम्यून डिफिसियेंसी सिंड्रोम। यह रोग एक वायरस के कारण होता है जिसको एचआईवी कहते हैं। एचआईवी संक्रमित मरीज के शरीर के अंदर रोगों से लड़ने की क्षमता समाप्त हो जाती है जिसके कारण मरीज कई रोगों से ग्रस्त होकर 10 से 15 वर्ष के अंदर मर जाता है।

कैसे फैलता है यह

एड्स संक्रमित व्यक्ति से असुरक्षित यौन संबंध से, एचआईवी संक्रमित खून चढ़ाने से, बिना उबली या इस्तेमाल की हुई संक्रमित सूई से, बच्चे को जन्म देते समय एचआईवी संक्रमित माता से उसके शिशु को।

एड्स संक्रमित मरीज के लक्षण

मरीज प्राय: टीबी से ग्रसित हो जाता है। वह टीवी की दवा देने से भी ठीक नहीं होता है। मरीज को लम्बे समय से बुखार रह सकता है। मरीज को डायरिया हो जाता है। उसकी ग्रंथियों में सूजन हो जाती है। मरीज का वजन तेजी से गिरता जाता है।

एड्स के संबंध में गलतफहमी

चूंकि यह लाइलाज रोग है इसलिए इसके संबंध में जानकारी के अभाव में दहशत अधिक है। एचआइवी के वायरस शरीर के बाहर सबसे दुर्बल वायरस है अर्थात शरीर के बाहर ज्यादा देर तक जीवित नहीं रह सकता है लेकिन शरीर के अंदर सबसे शक्तिशाली वायरस है जिसके आगे दवा भी लाचार हो जाती है। इसे याद रखें कि संक्रमित व्यक्ति को छूने से, मच्छर के काटने से, संक्रमित मरीज के साथ नौकरी करने से, संक्रमित मरीज के साथ खाने पीने से, संक्रमित मरीज के कपड़े पहनने से, हाथ मिलाने से या साझा शौचालय के प्रयोग से एड्स नहीं फैलता है।

सावधानियां

सुरक्षित कंडोम का इस्तेमाल करना चाहिए। कंडोम के अलावा अन्य कोई भी गर्भ निरोधक उपाय एड्स के प्रति सुरक्षा नहीं देते हैं। कंडोम के सही ढंग से इस्तेमाल की विधि भी ज्ञात होनी चाहिए। अज्ञात व्यक्ति जिसके चरित्र के बारे में ज्ञात नहीं है के साथ असुरक्षित यौन संबंध नहीं बनाना चाहिए। सुरक्षित रक्त का ही इस्तेमाल करना चाहिये। डिस्पोजेबल इंजेक्शन का इस्तेमाल करना चाहिए। सैलून में नये ब्लेड से सेविंग करानी चाहिए न कि उस्तरा से।

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