Sunday, December 22, 2013

'बख्श' के सीने में था मानवता का दर्द

धरती पर विरले ही ऐसे इंसान जन्म लेते हैं जिनके सीने में इंसानियत का दर्द और जुबां पर मुहब्बत का पैगाम रहता है। कवि एवं शायर संत बख्श बद्री नारायण संत भी इसी कड़ी में आते हैं। उनकी आवाज में अजीब सा दर्द था। राजनीति से उन्हें कभी लगाव नहीं रहा किंतु राष्ट्र प्रेम उनके सीने में कूट-कूट कर भरा हुआ था।
यह बातें प्रो.केपी श्रीवास्तव ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कही। वह शनिवार को संत बख्श बद्री नारायण की जयंती पर साहित्य कल्प के आर्यसमाज रोड स्थित कार्यालय पर आयोजित गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। आयोजन साहित्य कल्प व संत साधना समिति के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। संत साधना समिति के सचिव भोला प्रसाद आग्नेय ने कहा कि संत जी का दर्द व्यक्तिगत जीवन का ही दर्द नहीं बल्कि उसका गहरा संबंध संसार से भी है। डा.जनार्दन राय ने कहा कि संत जी की कविताओं को समझने की शक्ति जिस शब्द से मिलती थी वह है प्रेम। इनकी रचनाएं सुखद भविष्य के प्रति आश्वस्त करती हैं।
गोष्ठी में साहित्यकार छोटे लाल वर्मा 'मलाल' को संत वाचस्पति की उपाधि से अलंकृत किया गया। द्वितीय चरण में काव्यांजलि प्रस्तुत की गई जिसमें राधिका तिवारी, लाल साहब सत्यार्थी, बीएन शर्मा, अब्दुल कैस तारविद, रमेश मिश्र, जिगर बलियावी, रामप्रसाद सरगम, फतेहचंद बेचैन आदि ने श्रद्धासुमन अर्पित किए। गोष्ठी का प्रारंभ राधिका तिवारी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ।

No comments:

Post a Comment