कौन कहता है कि आसमान में छेद नहीं हो सकता, तबीयत से एक पत्थर तो उछालों यारों। इसे चरितार्थ कर दिखाया है बागी धरती के सपूत मोहम्मद खालिद ने चण्डीगढ़ में हाल ही में सम्पन्न हुई 17 वीं राष्ट्रीय दृष्टिबाधित खेलकूद प्रतियोगिता के अंतर्गत शतरंज का खिताबी मुकाबला जीत कर। साथ ही नसीहत भी दी कि इंसान में अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो विकलांगता कतई आड़े नहीं आती। इस प्रतियोगिता में उन्होंने अपने ही सगे भाई मोहम्मद मिसबाहुल को ट्राईबेकर के आधार पर पराजित कर बलिया के लिए इतिहास रचा।
बता दें कि चितबड़ागांव नगर पंचायत के वार्ड नम्बर 12 आजाद नगर निवासी अब्दुल मन्नान के पुत्र मो.खालिद दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए द्वितीय वर्ष व मो.मिसबाहुल जेएनयू में एमए प्रथम वर्ष में अध्ययनरत हैं। इनके अलावा तीसरा भाई भी दृष्टि बाधित है। शारीरिक रूप से स्वस्थ चौथा भाई अपने पिता के साथ घड़ी की दुकान चलाता है। परिवार में कोई भी शतरंज का खिलाड़ी नहीं लेकिन बचपन में यार-दोस्तों के मुंह से ग्रैण्ड मास्टर विश्वनाथन आनंद का नाम सुन कर इनमें भी शतरंज का खिलाड़ी बनने का जुनून चढ़ा लेकिन आज इस मुकाम पर पहुंच कर भी इन्हे चैन नहीं। गुरुवार को बातचीत के दौरान गांव आये खालिद ने बताया कि दोनों का सपना है अंतर्राष्ट्रीय मुकाबला जीतना और इसके लिए वे प्रयासरत है।
दृष्टिहीनों के लिए होता विशेष चेस बोर्ड
खालिद के अनुसार दिल्ली में ही स्थित एक संस्थान में दृष्टिहीनों को शतरंज का प्रशिक्षण दिया जाता है जहां से उन दानों भाइयों ने प्रशिक्षण लिया। बताया कि हम लोगों के लिए एक विशेष चेस बोर्ड रहता है। छूकर ही हम पहचान लेते है कि कौन सी गोटी आगे बढ़ी है और उसके मुताबिक उन्हे क्या चाल चलनी है।
Thursday, January 13, 2011
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