Tuesday, October 26, 2010
भगवत् भक्ति में तर्क का कोई स्थान नहीं!
भगवत् भक्ति में तर्क की कोई जगह नहीं। शिव कथा में जिसकी भक्ति नहीं उसे राम कथा सुनने का भी अधिकार नहीं। यह बातें अयोध्या से पधारे अजय शास्त्री उर्फ बिन्दु जी महाराज ने कही। वह सोमवार को निकटवर्ती गांव बभनौली स्थित काली मंदिर पर शिव पूजन उपाध्याय के संयोजकत्व में आयोजित शतचण्डी महायज्ञ के दौरान प्रवचन कर रहे थे। सती के एक प्रसंग को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि शंकर की अद्र्धागिनी तो केवल श्रद्धा ही हो सकती है लेकिन सती का मन कैलाश में बसा था उसी का परिणाम रहा शंकर से उनका विछोह। इसके लिए उन्हे प्रायश्चित करना पड़ा। फिर भी शंकर नहीं मिले तो सती को हजार वर्ष तक कठोर तपस्या करनी पड़ी। पार्वती व शंकर विवाह का मार्मिक वर्णन करते हुए शास्त्री जी ने कहा कि शंकर जब दूल्हा बन कर चले तो धर्म अर्थात नंदी पर सवार होकर और वह भी पीछे मुंह करके। वह लोगों को बताना चाहते थे कि ससुराल जाओ तो मुंह परिवार की तरफ करके। अगर मुंह भूल से भी ससुराल की तरफ हो गया तो स्थिति गड़बड़ हो सकती है। आचार्य ने जोर देकर कहा कि भगवान शंकर व पार्वती के संयोग से श्रीराम कथा रूपी गंगा प्रवाहित हुई। उन्होंने कहा कि कलिकाल में लोग शरीर से कम, मन से ज्यादा परेशान है। ऐसे लोगों को शिव कथा सुननी चाहिये।
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