Friday, July 23, 2010

संत मिलन के समान कोई सुख नहीं : ईश्वरदास!

सिकन्दरपुर (बलिया), निप्र। क्षेत्र के परमधाम परिसर डूहां में चल रहे गुरुपूजा यज्ञ महोत्सव के चौथे दिन भी रुद्राभिषेक एवं सरस्वती चरितामृत पाठ की गूंज-अनुगूंज से आस-पास का वातावरण धर्ममय रहा। इस अवसर पर व्यासपीठ से परिब्रगाजकाचार्य ईश्वरदास ब्रह्माचारी ने ब्रह्माज्ञान विषयक चर्चा परिचर्चा में अनिवार्यत: सभी को सत्कर्म करने की प्रेरणा दिया। साथ ही जीवनोपयोगी वस्तुओं के त्यागपूर्ण उपभोग को अमृत स्वरूप बताया। उन्होंने सुख-दुख की विस्तृत वैज्ञानिक विवेचना करते हुए कहा कि यद्यपि अनुकूलता की स्थिति में सुख तथा प्रतिकूलता में दुख का होना माना जाता है। जबकि संत मिलन के समान कोई सुख नहीं और दारिद्रय के समान कोई दुख नहीं है। आगे कहा कि वस्तुत: मोह ही सभी दु:खों का कारण है। जब तक मोह अविद्या नष्ट नहीं होगी तब तक दु:ख दूर नहीं हो सकता। मोहजनित दु:ख सामयिक नहीं बल्कि कई जन्मों से जीव के साथ लगा हुआ है। इसलिए दु:ख निवृत्ति हेतु सन्तों के पास जाना चाहिए। सन्त भगवत एक ही है। राम इसका पर्याय हैं किन्तु कबीर ने उसी को वास्तविक राम माना जो सबको अपने में रमा लिया हो और सब में स्वयं समाया हुआ हो। ब्रह्मासत्ता सृष्टि के कण-कण में समायी हुई है जिससे सृष्टि नश्वर होते हुए भी उसका अस्तित्व दिखाई पड़ता है। स्वामी जी ने आत्मोत्थान के लिए ध्यान योग को आवश्यक बताया तथा कहा कि ध्यान की स्थिति में जीव निर्मलता प्राप्त कर शिव स्वरूप ब्रह्मा स्वरूप हो जाता है।

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