Thursday, July 22, 2010

जन्म जन्मान्तर के पुण्यों से मिलता है सद्गुरु का सानिध्य !

सिकन्दरपुर (बलिया), निप्र। परिब्राजकाचार्य ईश्वरदास ब्रह्माचारी ने कहा कि संत सद्गुरु के सानिध्य में बैठना आसान नहीं है। कई जन्मों के पुण्योदय से यह सौभाग्य मिलता है। वह क्षेत्र के अद्वैत शिव शक्ति परमधाम डूहां के प्रांगण में गुरु पूजा यज्ञ महोत्सव के अवसर पर श्रद्धालुओं से रूबरू थे। कहा कि जब संत सद्गुरु के पास बैठ कर ज्ञानगुदरी तैयार करते हैं तो अज्ञान रूपी अंधकार से बचते हैं क्योंकि वह भिन्न-भिन्न महापुरूषों के आप्त अनुभव तथा सद्ग्रंथों के निचोड़ से बनी है। कहा कि अपने मन रूपी दर्पण पर जमी अविद्या रूपी मैल को सद्गुरु के कमलवत चरणों की रजरूपी मकरंद से स्वच्छ करने पर आत्म स्वरूप की दर्शनाभूति होगी। अन्य कोई विकल्प नहीं। जहां हमारी श्रद्धा भक्ति, विवेक शक्ति, चिंतन प्रणाली काम करेगी वहां मनोन्द्रियां पहुंच भी नहीं सकती। जब सम्यक रूपेण चित्त शुद्धि होगी तभी आत्मस्वरूप की अनुभूति होगी। गुरु चरणों के रज में ही ऐसी अलौकिक कार्यक्षमता निहित है। स्वामी जी ने आगे कहा कि चर्म चक्षुओं से दृश्य जो रूप है वह नाशवान है किंतु मन रूपी दर्पण के स्वच्छ होने पर जो स्वरूप दृश्य होता है वही सत्य व सनातन है। परमात्मा को परिभाषित करते हुए कहा कि जो सबको अपने में रमाये हुए है और जो सब में समाया हुआ है वही परमात्मा है। इसी प्रकार आत्मा जागृति बुद्धि का दूसरा नाम है किंतु जड़ता-अज्ञान-मोह-अविद्या से आवृत होने पर जीव की संज्ञा होती है। गुरुवचन रूपी रवि रश्मियों से महामोह रूपी घोर अंधकार विनष्ट होता है और तभी आत्मा- परमात्मा की दर्शनाभूति होती है।

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