Thursday, June 17, 2010

गांवों में ढूंढे नहीं मिल रही हीरा-मोती की जोड़ी !

रतसर (बलिया), निप्र । क्षेत्र में गांवों की जिन्दगी से दो बैलों की जोड़ी की परम्परा व रस्म रिवाज तेजी से समाप्त हो रही है। यदि यही स्थिति लगातार बनी रही तो इसमें दो राय नहीं कि आने वाले दिनों में ये परम्पराएं मात्र यादगार बनकर रह जायेंगी। जब से गांवों में टै्रक्टर, बिजली व अन्य वैज्ञानिक कृषि संयन्त्रों का तेजी से प्रचलन बढ़ा है सदियों से चली आ रही दो बैलों की जोड़ी की उपयोगिता यहां से समाप्त होती जा रही है। अब तो ढूंढने पर भी नहीं मिल रही है हीरा-मोती की जोड़ी।

कस्बे के बड़े बुजुर्गो का कहना है कि कभी ऐसा भी समय था जब गांवों में लोगों के दरवाजे पर पक्की व कच्ची मिट्टी की चरन बनायी जाती थी। एक तरफ बैलों की जोड़ियां तो दूसरी तरफ दुधारू बांधे जाते थे। पहले जब ग्राम्यांचलों में कृषि संयंत्रों का प्रचलन नहीं था उस समय इन्हीं बैलों के सहारे खेती बारी घर गृहस्थी से लेकर सिंचाई मड़ाई यहां तक की तेल की पेराई तक की जाती थी। आज के परिवेश में सब कुछ बदल चुका है सारा काम आधुनिक यंत्रों की सहायता से कराया जा रहा है। यहीं नहीं गांव की पक्की सड़क पर जब से टै्रक्टर व ट्रालियों ने तेज गति से सफर करना शुरू कर दिया है मंद गति से चलने वाली बैलगाड़ियों का युग धीरे-धीरे समाप्ति पर है।

एक समय था जब इन बैलगाड़ियों का समान ढोने से लेकर नव विवाहित दुल्हनों की विदाई तक में प्रयोग होता था। सूर्य की निकली किरणों की आकृति वाले पहियों व काष्ठ उपकरणों पर आधारित बैलगाड़ियों को घुघरूओं व घंटियों से बंधे जुड़वा बैलों द्वारा खींचा जाता था। गांव की कच्ची उबड़-खाबड़ रास्तों पर बैलगाडि़यों को खींचते हुए जब जुड़वा बैल घुघरूओं को खनकाते व गले की घंटियों को बजाते हुए आगे बढ़ते थे बरबस ही लोगों की आंखे इनकी ओर आकर्षित हो जाती थीं। वर्तमान में शहरों के रूप में बदलते गांवों की तस्वीर में जुड़वा बैलों व बैलगाड़ियों की आकृतियां धुंधली पड़ती जा रही हैं। कस्बे सहित आसपास के गांवों में स्थिति यह है कि मात्र गिनती के ही किसानों के पास बैल हैं। वो भी शौक के तौर पर रखे गये हैं। वैसे पुराने किसानों का मानना है कि दुनिया में उन्हीं देशों की अर्थ व्यवस्था टिकाऊ सिद्ध हुई है जो मानव व पशु श्रम पर आधारित रही है। इस अर्थ में यंत्रीकरण का मानव व पशु श्रम के रूप में स्थापित होना शुभ संकेत नहीं है।

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