चली थीं अकेले कभी, अब कारवां ही कारवां नजर आने लगे
जीवन की राहों में वक्त के थपेड़े भी हौसला बढ़ाने लगे
उत्साह व आवेग के पंख जुड़ गये ऐसे
हार के रास्ते भी उन्हे जीत का हुनर बताने लगे..। कुछ ऐसे ही जोश, जज्बे व जुनून के साथ गरीब मां-बाप के सपनों को साकार करने के लिए चल पड़ी है बेटियां। माध्यम बनाया खो-खो को। राष्ट्रीय फलक पर छा जाने की कवायद में इन्होंने पांव इस सोच के साथ आगे बढ़ा दिये है कि चलो छू लें आसमां..उम्मीदे है यहां।
नगर के आनंद नगर मुहल्ले के अरविन्द शर्मा आलमारी बनाने के कारोबार से जुड़े हैं। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उनकी बेटियां खेल जगत में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल कर लेंगी लेकिन उनकी तीन बेटियां क्रमश: सुजाता, सुप्रिया व अम्बिका ने अपने दमदार प्रदर्शन से यह साबित कर दिखाया है कि अगर प्रतिभा है तो वह उजागर होगी ही। अभी हाल ही में खो-खो में प्रदेश का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घोषित की गयी सुजाता ने अपनी बहनों को बस राह दिखायी। उसी के नक्श-ए-कदम पर चल रही है उसकी छोटी बहनें सुप्रिया व अम्बिका जो उत्तर प्रदेश की टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए दो दिन पूर्व सिलिगुड़ी से सब जूनियर नेशनल खो-खो खेलकर वापस लौटी है। इनसे छोटी अमृता व भाई रोशन भी खो-खो के प्रति काफी दिलचस्पी लेने लगे है। सीनियर बालिकाएं भी इन्हें खो-खो के गुर सिखाने में पीछे नहीं है। इन बालाओं को बस एक ही बात सालती है कि खो-खो खिलाड़ियों को इस जनपद में अपेक्षित प्रोत्साहन आखिर क्यों नहीं मिलता। गुरुवार को बातचीत के दौरान इन खिलाड़ियों ने पूरी व्यवस्था पर जमकर भड़ास निकाली। कहा पूरे उत्तर प्रदेश में खो-खो का गढ़ बन चुके बलिया में इसका कैम्प एलाट न किया जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है वहीं जनप्रतिनिधियों की भी जमकर खबर लीं। कहा कि इन्हे यह नहीं भूलना चाहिये कि सामाजिक समरसता को अगर संजीवनी मिलती है तो खेल के मैदानों में ही जहां से प्रस्फुटित होने वाले संदेश क्षेत्र विशेष ही नहीं अपितु राष्ट्र की अखण्डता को मजबूती प्रदान करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते।
Friday, February 4, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment