Sunday, April 18, 2010

श्रीफल: कोई डिगा नहीं सका इसके अटल सिंहासन को !

सिकन्दरपुर (बलिया), निप्र।प्रकृति ने मानव शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अनेक तरह के फल दिये जिनमें एक श्रीफल या बेल भी है। एक साथ साहित्य, धर्म और आयुर्वेद में समान दखल रखने वाले इस फल का नाम श्रीफल क्यों पड़ा, यह तो बता पाना मुश्किल है लेकिन यह सर्वविदित है कि संस्कृत साहित्य से लेकर हिन्दी साहित्य तक इसके अटल सिंहासन को कोई डिगा नहीं सका। श्रीफल कवियों का सर्वप्रिय उपमान रहा है। धर्म में भी यह सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा हुआ है। देवाधिदेव महादेव के मस्तक पर बिल्वपत्र विराजमान रहता है। आयुर्वेद में भी इस की काफी महत्ता है। काया को शीतलता प्रदान करने वाला यह फल सर्वसुलभ और सर्वप्रिय है। ग्रीष्म ऋतु में बड़ी संख्या में लोग प्रतिदिन इसके शर्बत का आनंद उठाते है क्योंकि बेल अथवा उसका शर्बत उदर को शीतल रखने के साथ ही अनेक रोगों से गर्मी के दिनों में पेट की रक्षा करता है। पके श्रीफल का गुदा काफी मीठा व स्वादिष्ट होता है जिससे बच्चे बूढ़े व जवान आनंद लेकर उसे ग्रहण करते है।

प्रकृति की मार से अमृत फल भी अछूता नहीं, कम हुई आवक

रसड़ा : प्रकृति ने मानव जाति के लिए वह सबकुछ दिया है जिससे वह खान पान की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ वातावरण में व्याप्त इसकी मनोरम झांकी को निहार अनन्त सुख व खुशी की अनुभूति करता है। बाग-बगीचों में हरियाली प्रदान करने के साथ ही कई फल ऐसे हैं जो औषधियों के रूप में जनमानस के बीच अपना अमिट पहचान बनाये हुए है। इन सारी खूबियों से परिपूर्ण फलों में एक अमृत फल श्रीफल भी है जिस पर इस बार प्रकृति का कहर हावी हो गया है। अवर्षण व भीषण गर्मी के कारण वृक्षों पर काफी कम तादात में आये अमृत फल की आकृति पहले से अपेक्षा कृत छोटी भी दिख ही रही है। परिणाम स्वरूप इस वर्ष अमृत फल बाजार में काफी कम दिखायी पड़ रहे है तथा इसकी कीमत प्रति फल 15 से 20 रुपये है। श्रीफल प्राचीन काल से शर्बत व फलाहार के रूप में प्रचलित है। इस नाते लगभग सभी बाग-बागीचों में इसके वृक्ष को काफी शौक से लगाया गया है किन्तु पिछले वर्ष बरसात में काफी कम वर्षा होने तथा मौसम के तीखे तेवर के चलते इस वर्ष इस अमृत फल की आवक काफी कम हुई है। बेल के कम आवक के पीछे मानवीय असंवेदना, पर्यावरण प्रदूषण, गन्दगी विस्तार तथा बागवानों के समय से देखभाल न किये जाने को भी एक प्रमुख कारण माना जा रहा है।

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