Monday, August 22, 2011

रो पड़ा फलक, फटा धरती का कलेजा !

किसी ने सोचा भी नहीं था कि सोमवार की सुबह, मौत का खेल खेलेगी लेकिन हुआ यही और ट्रैक्टर ट्राली हादसे के रूप में बागी धरती को तीसरी बड़ी त्रासदी झेलनी पड़ी। खास बात यह रही कि रूह को कंपा देने वाली अब तक की तीनों ही घटनाएं सोमवार के दिन ही हुई। नगरा थानांतर्गत निछुआडीह, गौवापार गांव के समीप सोमवार पूर्वाह्न करीब दस बजे पानी से भरे गढ्डें में ट्रैक्टर ट्राली के पलट जाने से उस पर सवार लोगों में से 41 की मौके पर हुई मौत ने एक बार फिर जनपदवासियों को झकझोर कर रख दिया और आंखों में कौंध गया 17 अक्टूबर 2005 व 14 जून 2010 के वे खौफनाक मंजर। मौत के ताण्डव को देख कर धरती का कलेजा फटा जा रहा था वहीं फलक भी अपने आंसुओं को नहीं रोक पाया और दिन ढलते ही आसमानी बूंदे टपक पड़ीं।

बता दें कि हल्दी थाना क्षेत्र के ओझवलिया घाट पर 14 जून 2010 दिन सोमवार को गंगा में हुई नाव दुर्घटना में 62 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। हादसे का सबब बनी थी जर्जर नाव जिस पर क्षमता से कहीं अधिक लोग सवार थे। आलम ये था कि नदी से शव बाहर निकाले जा रहे थे तो दूसरी तरफ बगल में ही मृतकों की चिताएं भी जल रही थीं। मौत ने इसके पहले भी खेल गंगा की लहरों में ही 17 अक्टूबर 2005 को खेला था जब फेफना थाना क्षेत्र के छप्पन के डेरा गांव में मजदूरों से भरी नाव पलट गयी थी। इस नाव पर सवार होकर परवल की रोपाई करने जा रहे 46 मजदूर काल के गाल में समा गये थे। उस समय भी हर तरफ फैली लाशें और उसके आस पास विलाप करते परिजनों को देख उस दियारे का भी कलेजा फट गया था। ओझवलिया में जहां घटना के बाद लोग काफी देर तक प्रशासन का मुंह ताकतें रहे वहीं छप्पन के डेरा की घटना में तत्कालीन राजस्व मंत्री और क्षेत्र के विधायक अम्बिका चौधरी के प्रयास से वहां राहत कार्य बहुत तेजी से हुआ। घटनास्थल पर ही मृतकों के शव का पोस्टमार्टम हुआ और मृतकों के परिजनों को शवदाह से पूर्व ही एक-एक लाख रुपये की अहेतुक सहायता प्रदान कर दी गयी थी। ट्रैक्टर ट्राली हादसे में भी मृतकों के शवों के पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय भेजना प्रशासन ने मुनासिब नहीं समझा और नगरा में ही इसकी व्यवस्था कर दी गयी।

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