Monday, August 8, 2011

रेशम की डोर से बंधा नेह भरा नाता !

मिला बहनों का भरपूर प्यार

राजीव वर्मा, अभिनेता

अगर दिल में एक-दूसरे के लिए नि:स्वार्थ प्रेम हो तो यह बात कोई मायने नहीं रखती कि कोई आपका सगा भाई/बहन है या नहीं? वैसे मेरी दो सगी बहनें हैं, जिनके साथ मेरे संबंध बहुत अच्छे हैं। इसके अलावा मेरी कुछ मुंहबोली बहनें भी हैं। फोन या ई-मेल के जरिये उनके साथ मेरा संपर्क आज भी बना हुआ है। किसी भी रिश्ते में सहजता और प्यार होना चाहिए। सिर्फ रस्म अदायगी से बात नहीं बनती। मेरी बहनें अगर किसी वजह से मुझे राखी नहीं भेज पातीं और उस दिन केवल मुझसे फोन पर बात कर लेती हैं तो वह भी मेरे लिए काफी होता है।

वक्त के साथ मजबूत हुआ रिश्ता

गुन कंसारा, टीवी कलाकार

मेरा कोई सगा भाई नहीं है, लेकिन अपने चाचा के बेटे तुषार को मैं बचपन से राखी बांधती आ रही हूं। वह मेरे लिए सगे भाई से भी बढकर है। मैं उस पर अपना पूरा हक समझती हूं और रक्षाबंधन वाले दिन मैं उससे अपनी पसंद का गिफ्ट लडकर भी मांग लेती थी। अब करियर के लिए मैं अपना होम टाउन चंडीगढ छोडकर मुंबई आ गई और पहले की तरह हमारा मिलना-जुलना नहीं हो पाता। फिर भी मैं उसके लिए राखी जरूर भेजती हूं और वह भी मेरे लिए गिफ्ट भेजना नहीं भूलता। मुझे ऐसा लगता है कि अगर भाई-बहन के बीच सहज संबंध हो तो दूर रहने के बावजूद वक्त के साथ उनके रिश्ते में और भी मजबूती आ जाती है।

खूबसूरती से संजोया है रिश्ते को

मालिनी अवस्थी, गायिका

वैसे तो मेरे सगे भाई मुझसे बडे हैं और बचपन से आज तक मुझे उनका भरपूर स्नेह मिलता रहा है, लेकिन शादी के बाद राखी और भइया दूज जैसे त्योहारों पर मन में एक कसक सी रह जाती थी कि काश! आज भइया मेरे साथ होते। आज से लगभग 14 वर्ष पहले जब मेरे पति की पोस्टिंग फैजाबाद जिले में थी, तब कुछ ऐसा संयोग हुआ कि वहां संगीत और साहित्य में रुचि रखने वाले, अयोध्या के विमलेंद्र प्रताप मोहन मिश्र से मेरी मुलाकत हुई। पहली ही नजर में वह मुझे बडे अपने से लगे। अनायास ही उनके लिए मेरे मुंह से भइया संबोधन निकल गया। उसी दिन से वह मेरे राखी भाई बन गए। आज भले ही मैं दिल्ली आ गई हूं, लेकिन हमारा यह प्यार भरा नाता आज भी बरकरार है। हम दोनों ने इस रिश्ते को बडी खूबसूरती से संजोकर रखा है।

संभाल कर रखता हूं राखियां

जतिन कोचर, फैशन डिजाइनर

हमारे परिवार में लडकियां बहुत कम हैं, पर मेरी बुआ की बेटी कनुप्रिया मेरी सबसे लाडली बहन है। हमउम्र होने की वजह से हमारा रिश्ता बेहद दोस्ताना रहा है। इस रिश्ते का प्यार आज भी वैसे ही बरकरार है, जैसा कि पहले था। अब उसकी शादी हो चुकी है और वह सिंगापुर में रहती है। दो साल पहले मैं सपरिवार वहां छुट्टियां बिताने गया था। वह मेरे बच्चों की सबसे प्यारी बुआ है। वह हर साल मेरे लिए कोरियर से राखी की थाली भेजना नहीं भूलती। भले ही मैं गिफ्ट देने में देर कर दूं, पर उसकी राखी हमेशा समय से पहले पहुंच जाती है। मेरी सारी कजन्स मुझसे छोटी हैं। एक छोटी बहन हर साल मेरे लिए अपने हाथों से राखी बनाकर लाती है। मैं अपनी सारी राखियां संभाल कर रखता हूं। आजकल राखियां डोरीनुमा शेप में होती हैं, इसलिए बाद में मैं उन्हें अपने जरूरी कागजात के साथ बांध देता हूं, ताकि मेरी बहनों की शुभकामनाएं हमेशा मेरे साथ रहें।

खून का नहीं दिल का रिश्ता

मैत्रेयी पुष्पा, साहित्यकार

मैं अपनी मां की इकलौती संतान हूं। जब मेरी उम्र डेढ वर्ष थी तभी मेरे पिताजी का स्वर्गवास हो गया था। मां ग्रामसेविका थीं। हमेशा उनका तबादला एक से दूसरे गांव में होता रहता था। उन्हें मेरी पढाई की बहुत चिंता रहती थी। वह किसी भी हाल में मुझे पढाना चाहती थीं। जब उनकी पोस्टिंग झांसी के पास खिल्ली गांव में थी, तब वहां के एक किसान परिवार से उनके बडे आत्मीय संबंध थे। वहां से जब मां का तबादला दूसरी जगह हो गया तो उन लोगों ने कहा- पुष्पा को यहीं हमारे पास रहने दो। तब मां को भी ऐसा लगा कि बार-बार जगह बदलने से मेरी पढाई का नुकसान होगा। इसलिए उन्होंने मुझे पढने के लिए उन्हीं के घर पर छोड दिया। उनके यहां कोई बेटी नहीं थी। इसलिए वहां मुझे मेरे पांच मुंहबोले भाई मिले। रक्षाबंधन वाले दिन पांचों भाई सुबह तैयार होकर मुझसे राखी बंधवाने के लिए एक कतार में बैठ जाते थे। मैंने अपने आत्मकथात्मक उपन्यास कस्तूरी कुंडल बसे में उनके बारे लिखा भी है कि युवराज और रतन सिंह जैसे भाई किसके होंगे? अब तो मेरी मां नहीं रहीं, लेकिन आज भी मेरा भरापूरा मायका कायम है। मेरी बेटियों की शादी में उन्होंने बडे उत्साह से आगे बढकर मामा के रस्मों का निर्वाह किया। मैं अकसर अपने भाइयों से कहती हूं कि खून का रिश्ता नहीं है तो क्या हुआ हमने पानी तो एक ही घर का पीया है।

सुरों का मधुर बंधन

जब भी राखी भाई-बहन के रिश्ते की बात चलती है तो सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर से जुडे कई प्रसंग याद आ जाते हैं। अभिनेता दिलीप कुमार उनके राखी भाई हैं। सन 2000 में प्रसारित टेलीविजन शो इस दुनिया के सितारे के एक एपिसोड में दिलीप कुमार को राखी बांधते हुए लता जी ने कहा था, अब तक तो सिर्फ हम ही जानते थे कि हम दोनों राखी भाई-बहन हैं, पर आज से दुनिया जानेगी। उनका यह स्नेह भरा रिश्ता आज भी बरकरार है। इसके अलावा गायक मुकेश और संगीतकार मदन मोहन को भी लता जी अपना भाई मानती थीं। मुकेश को वह हमेशा मुकेश भइया कहती थीं और उन्हें राखी बांधती थीं। यह कैसा दुखद संयोग था कि लता जी अपने इस भाई के अंतिम समय में उनके साथ थीं। अगस्त 1976 मुकेश और लता जी एक स्टेज शो में अमेरिका गए थे। वहीं दिल का दौरा पडने से उनका निधन हो गया। वहां लता जी के साथ स्टेज पर गाए गए उनके दो अंतिम गीत थे- सावन का महीना पवन करे सोर.. और कभी-कभी मेरे दिल में..। मुकेश और दिलीप कुमार की तरह लता जी के तीसरे भाई थे- संगीतकार मदन मोहन। उनके संगीत निर्देशन में लता जी ने तमाम सुरीले गीत गाए। चाहे वह फिल्म अनुपमा का गीत धीरे-धीरे मचल.. हो या अनपढ का दर्द भरा गीत आपकी नजरों ने समझा. मदन मोहन का बेहतरीन संगीत निर्देशन और लता जी की सधी हुई आवाज ने इन गीतों को अमर बना दिया। इन अच्छे गीतों के लिए वह डांट सुनने को भी तैयार रहती थीं। इस इंडस्ट्री में अगर कोई उन्हें डांट सकता था तो वह सिर्फ मदन मोहन जी ही थे। लता जी अपने इस भाई से डांट इसलिए सुनती थीं क्योंकि गीत में बोल के हिसाब से भाव नहीं आ पाते थे। जब तक मदन मोहन जीवित रहे, लता जी उन्हें राखी बांधती रहीं। यह सोचकर बडा ताज्जुब होता है कि ग्लैमर की इस दुनिया में भी पहले इतने सीधे-सच्चे रिश्ते हुआ करते थे। आज से कुछ साल पहले लता जी ने फिल्म पेज 3 के लिए एक गीत गाया था- कितने अजीब हैं रिश्ते यहां के..। इस गीत में आज के बनावटी रिश्तों की बात है और इसकी रिकॉर्डिग के दौरान उन्होंने इसके गीतकार संदीपनाथ से कहा था, तुम आज से चालीस साल पहले इंडस्ट्री में क्यों नहीं आए..?

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