Monday, May 30, 2011
सद्पुरुषों की शरण में जाते ही बदल जाता मनोचित्त !
संसार में जब व्यक्ति निराश हो जाता है तब वह संतों व सद्पुरुषों की शरण में जाता है और वहीं उसका मनोचित्त बदल जाता है। यह बातें खेजुरी में आनंद सीनियर सेकेंड्री स्कूल के तत्वावधान में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में पं.शीतल प्रकाश ने कहीं। उन्होंने भक्ति के प्रसंग पर कहा कि एक बार भक्ति के दोनों बेटे ज्ञान व वैराग्य मुर्छित हो जाते हैं भक्ति के सोच में किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचते कि दोनों का क्या होगा। इतने में मनसागामी देवर्षि नारद का पदार्पण होता और वह भक्ति से उदासी का कारण पूछते हैं। भक्ति को नारद जी उचित परामर्श देते हुए कहते हैं कि व्यक्ति को कभी भी जो सद्पुरुष हैं संत हैं उनकी शरण में जाने से ही उचित निदान मिलता है।
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