बलिया। क्षेत्र के नारायणपुर गांव में मंगलवार को वन विभाग व प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष गांव में घुसे एक तेंदुए व ग्रामीणों के बीच चार घंटे तक चली मुठभेड़ में खूंखार को मार गिराये जाने की घटना ने वन विभाग के अधिकारियों को कटघरे में खड़ा कर दिया है। सवाल ये है कि इतनी लम्बी अवधि में तेंदुए को पकड़ने की पहल क्यों नहीं हुई।
गौरतलब है कि शासन द्वारा वनों तथा वन में रहने वाले पशु पक्षियों की सुरक्षा की दृष्टि से ही वन विभाग की स्थापना की गयी। शासन द्वारा इसी कार्य के लिए करोड़ों-करोड़ों रुपये व्यय किया जाता है। वन विभाग का दायित्व होता है कि जब वन के खूंखार जानवर गांवों में प्रवेश कर जायें तो लाउडस्पीकर से प्रचार-प्रसार कर खूंखार जानवरों से बचने के लिए ग्रामीणों को घरों में रहने का सख्त निर्देश दिया जाय तथा उनके लिए जाल, पिंजड़ा अथवा बेहोश करने वाली गोली दाग कर पकड़ लिया जाय किन्तु नारायणपुर में ऐसा कुछ भी न कर वन विभाग व प्रशासनिक अमला मूकदर्शक बना रहा। यदि विभाग तेंदुए की मौत का ही इन्तजार कर रहा था तो उसकी उपादेयता एवं जवाबदेही क्या रही। ऐसे तमाम सवाल है जो विभागीय अधिकारियों को घेरे में ले रहे है।
ऐसा माना जा रहा है कि निश्चित तौर पर ग्रामीण तथा आम आदमी किसी भी खूंखार जानवर से बचाव के लिए अपनी रक्षा तो अवश्य करेगा किन्तु नारायणपुर में वन विभाग व पुलिस का लम्बा चौड़ा लश्कर तथा प्रशासनिक अमला चार घंटे के अन्तराल में तेंदुए को पकड़ने की कार्रवाई क्यों नहीं शुरू कर सका। यह सोचनीय और जांच का विषय बना हुआ है।
मृत तेंदुए की वन विभाग ने की अन्त्येष्टि
बलिया: रसड़ा कोतवाली क्षेत्र के नारायणपुर गांव में ग्रामीणों की लाठियों का निशाना बने तेंदुए की अन्त्येष्टि विभागीय अधिकारियों ने बुधवार को जीराबस्ती स्थित वन बिहार में कर दी। बता दें कि उसका पोस्टमार्टम मंगलवार को नगर के बनकटा मुहल्ले में स्थित पशु अस्पताल में किया गया था।
Sunday, July 5, 2009
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