बलिया। रेवती नगर से मात्र 3 किमी पश्चिम रेवती-बलिया मार्ग से सटे पचरूखा में स्थित मां पचरूखा देवी के मंदिर में सच्चे मन से प्रार्थना करने पर भक्तों की हर मुराद पूरी होती है। वैसे भक्तजन पूरे वर्ष देवी का दर्शन-पूजन करते है किन्तु चैत रामनवमी व शारदीय नवरात्र में दूर-दराज से दर्शन करने वाले भक्तों का रेला लग जाता है। प्रति वर्ष चैत रामनवमी के यहां एक दिवसीय वृहद मेला लगता है। जहां घाघरा दियरांचल सहित जनपद के सुदूर क्षेत्रों से हजारों स्त्री-पुरुष यहां आकर श्रद्धापूर्वक देवी का दर्शन व पूजन करते है।
बताते है कि सन् 1857 में अंग्रेजों से लड़ते हुए वीर कुंवर सिंह अपने ननिहाल सहतवार होते हुए पचरूखा (गायघाट) पहुंचे। पीडी इण्टर कालेज के उत्तर की तरफ दह से सटा मुड़िकटवा नामक स्थान है जहां घनघोर जंगल था। वीर कुंवर सिंह 106 अंग्रेज सैनिकों को मारने के पश्चात रेलवे लाइन से सटे इस जंगल में स्थित टीले पर विश्राम करने के दौरान सो गये। उससे सटा मिट्टी का डीह था जहां देवी की पिण्डी बनी थी। अचानक सपने में वीर कुंवर सिंह को एक दिव्य ज्योति पुंज ने दर्शन दिया तथा सावधान करते हुए अन्यत्र सुरक्षित स्थान पर चले जाने का निर्देश दिया। कारण अंग्रेज सैनिक उनका लगातार पीछा करते हुए आ रहे थे। अंग्रेज सैनिकों के पहुंचने से पूर्व वीर कुंवर सिंह सुरक्षित स्थान पहुंच चुके थे। सन् 1928-30 में देवी की प्रेरणा से ही पचरूखा गायघाट निवासी एक वैश्य परिवार के व्यक्ति ने देवी के स्थान का जीर्णोद्धार कराया। देवी की कृपा ही थी कि उक्त वैश्य परिवार वाराणसी में लाखों की सम्पत्ति का मालिक बन बैठा। आज देवी के स्थान पर एक भव्य मंदिर बन चुका है।
Sunday, March 29, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment