बलिया। पाश्चात्य जीवन शैली के अंधानुकरण में भारतीय संस्कृति का तिरस्कार राष्ट्रघाती होगा। भारत की मिली जुली संस्कृति में अपरिमेय क्षमतायें है परन्तु इसकी अपनी एक विशिष्ट पहचान अब भी बनी हुई है। ज्ञान, विज्ञान, चिंतन, दर्शन एवं समस्त प्रकार की शिक्षाओं का उद्देश्य लोक संगठन ही होना चाहिए।
शनिवार को राधिका शिक्षण संस्थान छितौनी रसड़ा के वार्षिकोत्सव को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि श्रीमती फुलेहरा स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय के प्रबन्धक गोविन्द नारायण सिंह ने उपर्युक्त उद्गार व्यक्त किये। इसके पूर्व उन्होंने सांस्कृतिक मंच का फीता काटकर बच्चों के कार्यक्रम का शुभारम्भ किया।
इस अवसर पर बच्चों द्वारा देर रात तक अनेक रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये जिसे दर्शकों ने काफी सराहा। बच्चों ने सरस्वती वन्दना तथा लोक विधाओं से ओतप्रोत कार्यक्रमों में बच्चों ने दुर्गा वन्दना, भगवती जागरण, समूह गान, कव्वाली आदि कार्यक्रम प्रस्तुत कर दर्शकों को झूमने को विवश कर दिया।
कुमारी हर्षिता सिंह द्वारा प्रस्तुत स्वागत गीत के साथ कवि सम्मेलन में अनुराग, विशाल, अतुल, मोहित और विशाल कुमार की प्रस्तुतियों ने सभी को भाव विभोर कर दिया। इसके अतिरिक्त बच्चों ने भारत दुर्दशा एकांकी प्रस्तुत कर सभी के आंखों को सजल कर दिया। अंत में कार्यक्रम का संचालन कर रहे प्रधानाचार्य रामबदन जी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।
Sunday, April 26, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment