बलिया। महायज्ञिक परम्परा से शुरू हुआ महर्षि भृगु की तपोभूमि पर ऐतिहासिक मेला ददरी अब जमाने की रंगत के साथ हाइटेक हो गया है। जहां पहले संत महात्माओं के समागम के साथ ही वेद की ऋचाओं और देव प्रस्तुतियों के महामंत्रों से पूरा माहौल गुंजायमान रहता था वहां अब इनके साथ ही मोबाइल फोन, टीबी सेट और कम्प्यूटर, कम्प्यूटर शिक्षा के स्टालों के माध्यम से गांव की जनता को भी इनके महत्व समझाये जा रहे है। वहीं इनकी उपयोगिता और इससे होने वाले नफा-नुकसान के बारे में भी विस्तृत जानकारियां मुहैया कराकर लोगों को आकर्षित किया जा रहा है।
महर्षि भृगु के परम शिष्य दर्दर मुनि के नाम पर लगने वाला ऐतिहासिक ददरी मेला वैसे तो ऋषि मुनियों के नाम से जाना जाता है लेकिन बदलते परिवेश में मेले के स्वरूप में भी बदलाव होने लगा है। मेले में परम्परागत सामानों की बिक्री के साथ ही आधुनिक युग के भी माल मेले में दिखायी पड़ने लगे हैं। यहां तक कि कम्प्यूटर युग के सभी सामान भी मेले के अंदर इस वर्ष से दिखायी पड़ रहे हैं।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन से हर वर्ष लगने वाले इस मेले में अधिकांश जनता ग्रामीण इलाकों से आती है। इस मेले की सबसे बड़ी पहचान यह है कि इसमें दो तरह की जनता आती है। सुबह दस बजे से शाम 6 बजे तक ग्रामीण क्षेत्र की जनता मेले में आती है। शाम से शहर व आस-पास के लोग मेले के अंदर आते है। इसमें हर तरह के सामान व खाने-पीने की वस्तु मिलती है जिसका लोग आनंद लेते है। इसके साथ ही सर्कस, झूले, नौटंकी जैसे कार्यक्रम मनमोहक होते है। बदलते परिवेश में मेले में कम्प्यूटर व मोबाइल ने भी जगह बना लिया है। कम्प्यूटर के बारे में दुकानों पर लोगों को पम्पलेट के माध्यम से उसका महत्व व उपयोगिता के बारे में बताया जा रहा है। दुकानदार संजीव कुमार ने बताया कि मेले में इसका काफी फायदा होता है। एक तो गांव से आयी जनता को पम्पलेट के माध्यम से जानकारी दी जाती है। दूसरा आसानी से प्रचार-प्रसार हो जाता है। मोबाइल फोन के दुकानदार प्रभुनाथ ने बताया कि मेले में इस काउण्टर पर लोग आकर जानकारी प्राप्त करने के साथ ही खरीदारी भी कर रहे है। इनको मोबाइल फोन से होने वाले फायदे के बारे में बताया जाता है। हम सबका उद्देश्य गांव स्तर पर आधुनिक चीजों को पहुंचाना है। इसका बेहतर माध्यम भी यह मेला है।
Monday, November 9, 2009
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