Monday, May 30, 2011

सद्पुरुषों की शरण में जाते ही बदल जाता मनोचित्त !

संसार में जब व्यक्ति निराश हो जाता है तब वह संतों व सद्पुरुषों की शरण में जाता है और वहीं उसका मनोचित्त बदल जाता है। यह बातें खेजुरी में आनंद सीनियर सेकेंड्री स्कूल के तत्वावधान में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में पं.शीतल प्रकाश ने कहीं। उन्होंने भक्ति के प्रसंग पर कहा कि एक बार भक्ति के दोनों बेटे ज्ञान व वैराग्य मुर्छित हो जाते हैं भक्ति के सोच में किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचते कि दोनों का क्या होगा। इतने में मनसागामी देवर्षि नारद का पदार्पण होता और वह भक्ति से उदासी का कारण पूछते हैं। भक्ति को नारद जी उचित परामर्श देते हुए कहते हैं कि व्यक्ति को कभी भी जो सद्पुरुष हैं संत हैं उनकी शरण में जाने से ही उचित निदान मिलता है।

Monday, May 16, 2011

बीएड की कार्यशाला 21 से !

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की बीएड प्रथम वर्ष की कार्यशाला 21 मई से 1 जून व द्वितीय वर्ष की कार्यशाला 20 मई से 31 मई तक संचालित होगी। सम्बन्धित छात्र-छात्राएं आवश्यक सामग्री के साथ उपस्थित रहें। यह जानकारी सतीश चन्द्र इग्नू अध्ययन केन्द्र के समन्वयक डा. रामशरण पाण्डेय ने दी है।

प्रयोगात्मक परीक्षा 25 को

महाविद्यालय बांसडीह के बीए प्रथम व द्वितीय वर्ष की गृह विज्ञान की प्रयोगात्मक परीक्षा 25 मई को महाविद्यालय में सुबह 7 बजे से शुरू होगी। छात्राएं फाइल व प्रवेश पत्र के साथ महाविद्यालय में उपस्थित हों। उक्त जानकारी गृह विज्ञान की प्रवक्ता समीक्षा श्रीवास्तव ने दी है।

जन्मदिन पर प्रभु सुमिरन संध्या का आयोजन !

आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर जी के 55 वें जन्मदिन के अवसर पर संस्था आर्ट आफ लिविंग की जनपदीय शाखा की तरफ से टाउन हाल के मैदान में प्रभु सुमिरन की संध्या कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ अ‌र्न्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भजन गायक नितीन डावर एवं डा. मीरा सिंह ने रविशंकर जी के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित कर के किया। सांसद नीरज शेखर ने भी पुष्प अर्पण कर एवं प्रभु सुमिरन की संध्या कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर कार्यक्रम की गरिमा में चार चांद लगाया। सुशील भैया ने आर्ट आफ लिविंग संस्था के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। मुख्य कलाकार नितिन डावर को नवर्ष के बालक दिव्यम् ने माल्यार्पण कर स्वागत किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में चेतन अग्रवाल, डा. आशुतोष, परमेश्वर जी, निधेष अग्रवाल, गोपाल जी, डा. अमिता सिंह, मीरा सिंह, चितरंजन सिंह, केडी सिंह, राकेश जी, आशीष अग्रवाल, बटे कृष्ण, अभिषेक अग्रवाल, प्रभुनाथ गुप्ता, रतन जी, अवधेश, अजय जयसवाल, डा. अशोक सिंह की सराहनीय भूमिका रही। संचालन अनुज सरावगी ने किया।

Tuesday, May 10, 2011

बनें कम उम्र में सैन्य अधिकारी !

अगर आप अविवाहित हैं और सेना में अधिकारी बनकर देश की सेवा करना चाहते हैं, तो आपके लिए एनडीए बेस्ट है। यदि आपके अंदर मजबूत इरादा, आत्मविश्वास, ईमानदारी और जिम्मेदारी लेने की भावना है, तो आप इसमें जा सकते हैं, एनडीए में ऐसे लोगों की काफी मांग होती है। हाल ही में यूपीएससी ने एनडीए के लिए आवेदन आमंत्रित किए हैं। यदि आप इस पद के लिए आवश्यक योग्यता रखते हैं, तो आवेदन कर सकते हैं। आवेदन करने की अंतिम तिथि 9 मई तथा परीक्षा की तिथि 21 अगस्त, 2011 है।

आवश्यक योग्यता

यदि आप नेशनल डिफेंस एकेडमी के आर्मी विंग्स की परीक्षा में शामिल होना चाहते हैं, तो किसी भी मान्यता प्राप्त संस्थान या बोर्ड से बारहवीं पास होना जरूरी है। लेकिन नेशनल डिफेंस एकेडमी के एयर फोर्स और नेवल विंग्स की परीक्षा के लिए बारहवीं में मैथ्स और फिजिक्स होना आवश्यक है। इस परीक्षा में सम्मिलित होने के लिए वही अविवाहित पुरुष शामिल हो सकते हैं, जिनका जन्म 2 जुलाई, 1993 के बाद और 1 जनवरी, 1996 से पहले हुआ हो।

परीक्षा का स्वरूप

इसके लिए एक लिखित परीक्षा होगी। इसके अंतर्गत दो पेपर्स होते हैं। दोनों में वस्तुनिष्ठ प्रश्न पूछे जाते हैं। पहला पेपर ढाई घंटे का होता है, जिनमें 300 अंक के प्रश्न पूछे जाते हैं। इसके सभी प्रश्न गणित के विषयों से संबधित होते हैं, जबकि दूसरा पेपर भी ढाई घंटे का होता है। इसमें जनरल एबिलिटी से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। इसके लिए 600 अंक निर्धारित किए गए हैं।

प्रिपरेशन स्ट्रेटेजी

इस परीक्षा में बारहवीं स्तर के प्रश्न पूछे जाते हैं। इस कारण बारहवीं तक की एनसीईआरटी पुस्तकों का गहन अध्ययन करें। तैयारी के दौरान सबसे पहले उस सब्जेक्ट को पढें, जिसमें आप सबसे कमजोर हों। कुछ स्टूडेंट्स अपनी क्षमता को पहचाने बिना पढाई के अधिक घंटे निर्धारित कर लेते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि उसी अनुरूप पढाई न होने से उनकी तैयारी बाधित होने लगती है। बेहतर होगा कि आप अपनी स्पीड और कैपिसिटी के हिसाब से पढने का प्लान बनाएं। मैथ्स के सिलेबस में अर्थमैटिक्स, मेंसुरेशन, अलजेब्रा, जियोमेट्री, ट्रिग्नोमेट्री, स्टैटिस्टिक्स और प्रोबैबिलिटी के जरिए आपकी सैद्धांतिक समझ को जांचा जाएगा। मैथ्स में आप बेहतर तभी कर पाएंगे, जब तैयारी करते समय सभी कॉन्सेप्ट क्लियर करेंगे। जनरल एबिलिटी का पेपर दो भागों में बंटा होता है इंग्लिश और जनरल नॉलेज। इंग्लिश में एंटोनिम , सिनॉनिम, जंबल व‌र्ड्स पर आधारित सवालों के अलावा कॉम्प्रिहेंशन भी आता है। इसके अलावा, कुछ वाक्य आते हैं, जिनमें ग्रामर की गलतियां पकडनी होती हैं। इसकी तैयारी के लिए वॉकेबलरी की प्रैक्टिस करें। कॉम्प्रिहेंशन में बेहतर करने के लिए रीडिंग पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दें। इतिहास में मध्यकालीन और प्राचीन भारत के इतिहास की तुलना में आधुनिक इतिहास से ज्यादा सवाल आते हैं। इसलिए इस पर ज्यादा फोकस करें।

आत्मविश्वास है अहम

सैन्य अधिकारी बनकर आप न केवल देश की सेवा करते हैं, बल्कि आत्मसम्मान से भरा एक बेहतर जीवन भी आपके सामने होता है। यही कारण है कि एनडीए में जाने के लिए हर युवा प्रयत्न करता है-यह कहना है ला मिलिटियर एकेडमी, कानपुर के चीफ एडमिनिस्ट्रेटर कर्नल शिवमंगल शुक्ला (रिटायर्ड) का। प्रस्तुत हैं, उनसे बातचीत के कुछ प्रमुख अंश :

तमाम कॅरियर विकल्पों के बावजूद युवा एनडीए में क्यों जाना चाहता है?

एनडीए में वह सब कुछ है, जिसे आज के युवा चाहते हैं। इसमें पद, पैसा और प्रतिष्ठा के अलावा सेवानिवृित के बाद भी बेहतर कॅरियर विकल्प होते हैं। इसके अतिरिक्त आपको कम उम्र में अधिकारी बनने का सुनहरा अवसर भी मिलता है।

इंटरव्यू के दौरान ऑफिसर्स क्वालिटीज को परखा जाता है। इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है?

इस तरह के गुण हर छात्र के पास होते हैं, लेकिन आत्मविश्वास के अभाव में वे इन्हे पहचान नहीं पाते हैं। उचित मार्गदर्शन से इसमें निखार लाया जा सकता है। लगातार प्रयास से आप इंटरव्यू के लिए अपने अंदर ऑफिसर्स क्वालिटीज डेवलप कर सकते हैं।

इंटरव्यू के दौरान स्पीकिंग इंग्लिश जरूरी है?

जरूरी नहीं कि यहां आपकी अंग्रेजी अच्छी हो, तभी सफलता मिलती हो। यदि आपको अंग्रेजी की बेसिक समझ है और आप कम्युनिकेट करने में सक्षम हैं, तो विशेष परेशानी नहीं होगी। हां, अंग्रेजी अच्छी होने का लाभ इंटरव्यू में जरूर मिलता है।

इस परीक्षा की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स को क्या सलाह देंगे?

सबसे पहले सिलेबस के अनुरूप अच्छी तैयारी करें और पिछले वर्षो के प्रश्नों को देखकर योजना बनाएं, तो बेहतर कर सकते हैं। तार्किक ढंग से सोचें और त्वरित निर्णय लेने की क्षमता का विकास करें।

Saturday, May 7, 2011

चरित्र विहीन शिक्षा का मूल्य शून्य !

शिक्षक एवं शिक्षार्थी के बीच अनन्य संबंध होता है। वहीं शिक्षा महत्वपूर्ण है जो चरित्र का निर्माण करती है। चरित्र विहीन शिक्षा का मूल्य शून्य है। यह बातें सतीश चन्द्र कालेज के रीडर डा.देवेन्द्र नाथ सिंह ने कही। वह गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की 150 वीं जयंती के अवसर पर शनिवार को चन्द्रशेखर नगर स्थित जन शिक्षण संस्थान के तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जो गुरुदेव की विश्व बोध की भावना थी वह आज ग्लोबल विलेज के रूप में दिखायी दे रही है। गुरुदेव द्वारा शांति निकेतन जिसमें स्वयं गुरुदेव अध्यापक थे और मात्र पांच विद्यार्थियों से शुरुआत की, आज केन्द्रीय विश्वविद्यालय के रूप में ख्यातिलब्ध है। गुरुदेव की रचना भारत और बांग्लादेश का राष्ट्रगान है जो उनके साहित्यिक समृद्धि का द्योतक है। इस अवसर पर पिंकी वर्मा ने सरस्वती वंदना एवं स्वागत गीत गाया। अतिथियों ने गुरुदेव के चित्र पर माल्यार्पण किया। मुख्य अतिथि के रूप में जिला प्रोबेशन अधिकारी प्रभात रंजन ने कहा कि गुरुदेव बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी थे। आज हर भारतवासी का दायित्व है उनके पद चिह्नों का अनुसरण करें। राजेश द्विवेदी राजेश्वर ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। गोष्ठी में संजय कुमार, रमेश कश्यप, जयप्रकाश सिंह, अमृता सिंह आदि ने विचार रखे। संचालन ओमप्रकाश मिश्र ने किया।

Thursday, May 5, 2011

मां तो बस मां होती है !

बेहद छोटा पर उतना ही प्यारा शब्द है-मां। यह अपने भीतर ममता का अथाह सागर समेटे हुए है। कहा जाता है कि जब ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना की तो उसके लिए हर जगह खुद मौजूद होना संभव नहीं था। तो संसार की हिफाजत के लिए उसने मां को बनाया। मां के प्यार की कोई सीमा नहीं होती। वह बच्चे को बिना किसी शर्त के प्यार करती है और समस्त कमियों के साथ उसे सहर्ष स्वीकारती है। जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने भी तो कहा है, ..कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि माता कुमाता न भवति (पुत्र तो कुपुत्र हो सकता है, पर माता कुमाता नहीं होती)। सच, मां की ममता अनमोल होती है।

सहज है मातृत्व भाव

मातृत्व की भावना हर स्त्री में जन्मजात रूप से होती है। जन्म दिए बिना भी वह उसी शिद्दत से बच्चे को प्यार करती है, जैसा कि उसे जन्म देने वाली मां करती है। इस संबंध में मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. अशुम गुप्ता कहती हैं, लडकियों के मस्तिष्क की संरचना और उनमें में पाए जाने वाले प्रोजेस्ट्रॉन और एस्ट्रोजेन हॉर्मोन की वजह से उनमें शुरुआत से ही मातृत्व की भावना मौजूद होती है। तभी तो गुड्डे-गुडिया से खेलते हुए छोटी बच्चियां हूबहू वैसा ही व्यवहार करती हैं, जैसा कि एक मां अपने बच्चे के साथ करती है। अगर कोई स्त्री बच्चे को जन्म नहीं देती तो भी किसी दूसरे बच्चे के लिए उसके दिल में वैसा ही सहज प्यार होता है, जैसा कि एक मां के दिल में अपने बच्चे के लिए होता है। 45 वर्षीय आकाश जैन पेशे से वकील हैं। वह कहते हैं, हम सात भाई-बहन हैं और मैं सबसे छोटा हूं। जब मैं दो साल का था, तभी मेरी मां का निधन हो गया था। मेरी बडी भाभी ने ही मुझे पाला है। उनकी अपनी संतान नहीं है। उन्होंने कभी हम भाई-बहनों को मां की कमी महसूस नहीं होने दी।

एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत लतिका रॉय बताती हैं, मेरे जन्म के समय एनेस्थीसिया के गलत रिऐक्शन की वजह से मेरी मां जिंदगी भर के लिए बेडरिडन हो गई और इसके बाद वह लगभग दस वर्षो तक जीवित रहीं। वह बिस्तर पर लेटी भाव शून्य आंखों से हमें निहारती रहती थीं। उस समय हमारे घर में काम करने वाली शांति आंटी सही मायने में मेरे लिए यशोदा माता साबित हुई। मेरी बुआ बताती हैं कि उस वक्त उनका बच्चा भी छोटा था, इसलिए वह सगी मां की तरह मुझे फीड भी करती थीं। तब मेरे भइया चार साल के थे। हम दोनों भाई-बहनों को उन्होंने ही पाला है। हम उन्हें मां की तरह सम्मान देते हैं। छुट्टियों में मैं जब भी अपने होम टाउन कोलकाता जाती हूं तो वह मुझसे मिलने जरूर आती हैं और मेरे लिए अपने हाथों से बना सॉन्देश लाना नहीं भूलतीं।

अडॉप्शन का बढता चलन

स्त्री का स्वभाव ऐसा होता है कि वह प्यार देना और उसके बदले में प्यार पाना चाहती है। यह उसकी बेहद स्वाभाविक जरूरत है। अगर किसी वजह से उसे लाइफ पार्टनर का साथ नहीं मिल पाता तो भी उसके मन में बच्चे की चाहत बनी रहती है।। इसी वजह से अब महानगरों में मातृत्व की चाह रखने वाली अकेली स्त्रियों में भी बच्चा गोद लेने की प्रवृत्ति तेजी से बढ रही है। दिल्ली स्थित अडॉप्शन एजेंसी सिवारा (कोऑर्डिनेटिंग वोलंट्री अडॉप्शन रिसोर्स एजेंसी) के मुताबिक पिछले 20 वर्षो में केवल दिल्ली में ही 65 अकेली स्त्रियों ने बच्चों को गोद लिया है। स्त्रियों की आत्मनिर्भरता और आर्थिक आजादी की दृष्टि से यह बहुत बडा बदलाव है। इस संबंध में समाजशास्त्री डॉ. ऋतु सारस्वत कहती हैं, यह सकारात्मक और स्वागत योग्य सामाजिक बदलाव है। अब अकेली स्त्रियां भी मातृत्व के सुख वंचित नहीं हैं। वे अपने ढंग से जीवन की खुशियां ढूंढ रही हैं।

अब नहीं रोती सिंड्रेला

चाहे अंग्रेजी परीकथाकी सिंड्रेला हो या हिंदुस्तानी लोककथा के सीत-बसंत या फिर पुरानी हिंदी फिल्मों में मासूम बच्चों पर जुल्म ढाती अरुणा ईरानी या बिंदु टाइप की सौतेली मांएं। कुल मिलाकर पूरी दुनिया में सौतेली मां की ऐसी क्रूर छवि पेश की गई है कि यह बात किसी भी इंसान के गले नहीं उतरती कि सौतेली मां भी बच्चे से प्यार कर सकती है। सौतेली मां बनने का निर्णय किसी भी स्त्री के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। इस संबंध में समाजशास्त्री डॉ. ऋतु सारस्वत आगे कहती हैं, मां तो सिर्फ मां होती है। परिवार और समाज उसे सौतेला बना देता है। परिवार के अन्य सदस्य हर पल तथाकथित सौतेली मां की ममता की परीक्षा ले रहे होते हैं।

इस संबंध में सॉफ्टवेयर इंजीनियर रजत शाह (परिवर्तित नाम) कहते हैं, पंद्रह वर्ष पहले बेटी के जन्म के दौरान मेरी पत्नी का निधन हो गया। मेरे मन में हमेशा इस बात का डर रहता था कि अगर मैं रीमैरिज करता हूं तो पता नहीं दूसरी स्त्री मेरी बेटी को मां का प्यार दे पाएगी या नहीं? खैर मैंने दूसरी शादी कर ली और अपने होमटाउन अहमदाबाद से दिल्ली शिफ्ट हो गया। मैं नहीं चाहता था कि कोई रिश्तेदार मेरी बेटी को उसकी दूसरी मां के बारे में कुछ भी बताए। मेरी बेटी अब पंद्रह वर्ष की हो चुकी है। वह अपनी मां के साथ बेहद खुश है।

भारतीय समाज तेजी से बदल रहा है। अब लोग एडजस्टमेंट से संबंधित समस्याओं के लिए काउंसलर से सलाह लेने में जरा भी संकोच नहीं बरतते। 31 वर्षीया इंटीरियर डिजाइनर आकांक्षा सिंह कहती हैं, मैंने अपनेतलाकशुदा कलीग से प्रेम विवाह किया है। उनकी पहली पत्नी से एक बेटा भी है, जिसकी उम्र तब 5 वर्ष थी। हम शादी करना चाहते थे, लेकिन हम दोनों के मन में यह सवाल था कि बच्चा अपनी नई मां के साथ एडजस्ट कर पाएगा या नहीं? इसीलिए शादी से पहले हम दोनों मैरिज काउंसलर के पास गए। यह हमारे लिए बहुत फायदेमंद साबित हुआ। उन्होंने बताया कि शादी से पहले मैं बच्चे से कैसे दोस्ती बढाकर उसका प्यार और विश्वास जीतने की कोशिश करूं। इसलिए शादी से पहले अकसर मैं उसे अपने साथ आउटिंग पर ले जाती थी। हमारी शादी को पांच साल हो चुके हैं। अब हर्ष पूरी तरह मेरा बेटा बन चुका है और मैं उसकी मां।

जब मां नहीं होती मां

सरोगेसी मातृत्व का एक ऐसा रूप है, जिसके सफेद-स्याह पहलुओं में बडी पेचीदगी है। जब कोई स्त्री संतान को जन्म देने में अक्षम होती है तो उसके पति के स्प‌र्म्स और पत्नी के एग्स को परखनली में निषेचित करवा के उसे इंजेक्शन द्वारा किसी अन्य स्त्री के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है। उस स्त्री का दायित्व केवल बच्चे को जन्म देने तक ही सीमित होता है। जन्म देने के बाद वह खुद को बच्चे से पूरी तरह अलग कर लेती है। ज्यादातर मामलों में आर्थिक रूप से लाचार स्त्रियां पैसे की खातिर अपनी कोख किराये पर देती हैं। ऐसे मामले में कई बार दोनों स्त्रियों के आपसी रिश्ते में जटिलता पैदा हो जाती है। इसी वजह से अब परिवार के भीतर भी स्त्रियां (बहन, भाभी, देवरानी-जेठानी आदि) सरोगेट मदर बन रही हैं। यहां एक मां दूसरी स्त्री की खुशी के लिए अपनी ममता कुर्बान कर देती है। मेघना गुलजार द्वारा निर्देशित फिल्म फिलहाल में इस मुद्दे को बडी खूबसूरती से दर्शाया गया है। यहां जन्म देने वाली स्त्री मां होकर भी उस बच्चे की मां कहलाने की हकदार नहीं होती। सरोगेसी की प्रक्रिया भले ही विवादास्पद रही हो, लेकिन मातृत्व की भावना पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता।