Friday, June 25, 2010

विभिन्न कोर्स के लिए मान्यता !

सिकन्दरपुर (बलिया)। इलाहाबाद कृषि विश्वविद्यालय ने क्षेत्र के बीआईटी नवानगर को विभिन्न कोर्स के संचालन हेतु मान्यता प्रदान कर दी है। इस संस्थान को बीसीए, एमसीए, बीएससीआईटी, पीजीडीसीए,एमएससीआईटी, बीबीए, एमबीए आदि कोर्स के संचालन की मान्यता मिलने से क्षेत्र तथा जनपद के वह मेधावी छात्र जो अर्थाभाव के कारण निराश थे, इस संस्थान में प्रवेश लेकर कम खर्च में कोर्स पूरा कर सकेंगे। संस्थान के प्रबंधक भुवाल सिंह ने बताया कि हमारा अगला लक्ष्य जनरल नर्सिंग एण्ड मिडवाइफरी तथा बीटीसी प्रशिक्षण की मान्यता लेना है जिसकी पत्रावली शासन में विचाराधीन है।

Wednesday, June 23, 2010

बलिया के बलिदान पर बनेगी फिल्म बागी बलिया 1942 !

बलिया। क्रातिकारियों के बलिदान व भारत की स्वतंत्रता संग्राम में बागी बलिया की भूमिका से सम्बन्धित विजयश्री फिल्म्स प्रोडक्शन द्वारा एक फिल्म का निर्माण होगा। यह बातें स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के अध्यक्ष विनोद सिंह, अशोक चौबे व द्विजेन्द्र कुमार मिश्र ने मंगलवार को संयुक्त रूप से हुई प्रेसवार्ता के दौरान कहीं।

विनोद सिंह ने कहा कि शहीद स्मारक व स्वतंत्रता संग्राम शोध केन्द्र पुराना किला लखनऊ के तत्वावधान में बलिया की 1942 के जन आंदोलन से सम्बन्धित फिल्म बागी बलिया 1942 का निर्माण किये जाने का निर्णय लिया गया है। फिल्म के डायरेक्टर बब्बन राज होंगे। कहा कि फिल्म का निर्माण वेस्टर्न इंडिया फिल्म प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन मुंबई द्वारा किया जाएगा। फिल्म के निर्माण में 50 से 60 लाख रुपये की लागत आने की सम्भावना है। इसका मुहुर्त जुलाई/अगस्त के मध्य कराया जाना निश्चित किया गया है। स्वतंत्रता सेनानी विश्वनाथ चौबे के पुत्र अशोक चौबे ने बताया कि फिल्म निर्माण में आने वाली लागत में सहयोग करने हेतु जनपद के सेनानी परिवारों व स्वयं सेवी संगठनों से अपील की गयी है। फिल्म की पहली शूटिंग ओक्डेनगंज चौकी से की जाएगी। फिल्म बनाने का उद्देश्य पैसा कमाना नहीं है। इसमें कोई भी रोमांटिक दृश्य नहीं फिल्माया जाएगा। इस फिल्म से पहले डेढ़ घंटे की एक डाक्यूमेंटरी बना ली गयी है जिसको जल्द ही सेनानियों के परिवारों व जनता को दिखायी जाएगा।

Tuesday, June 22, 2010

अब सामाजिक विज्ञान अंग्रेजी में पढ़ेंगे यूपी बोर्ड के छात्र !

बलिया । उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद की अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने की घोषणा से शिक्षा क्षेत्र में एक बहुत बड़ा बदलाव आने की सम्भावना प्रबल हो गयी है। कयास लगाये जा रहे हैं कि इससे सीबीएसई और यूपी बोर्ड के बच्चों के बीच सुपीरियार्टी और इन्फीरियार्टी की खाई पाटने में मदद मिलेगी और यूपी बोर्ड के बच्चों की अंग्रेजी भी प्रवीण होगी।

बता दें कि उत्तर प्रदेश एजूकेशन बोर्ड ने यह निर्णय लिया है कि वर्तमान सत्र से अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दी जाएगी और इसके लिए स्कूलों को मान्यता देने का कार्य जिले स्तर के अधिकारी जिला विद्यालय निरीक्षक को सौंपा गया है। हालांकि अभी शासन का यह फरमान जिले तक पहुंच नहीं पाया है। इसलिए यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि नये फरमान का मापदण्ड और आधार क्या होगा। जनपद के बहुतेरे विद्यालयों के संचालक अंग्रेजी माध्यम से मान्यता लेने के लिए शासन की चिट्ठी की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

राय बुद्धिजीविओं की : किसी ने सराहा तो किसी ने कहा कि थमेगा हिन्दी का विकास

बलिया: यूपी बोर्ड के विद्यालयों में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने की पहल को लेकर शिक्षाविदों और बुद्धिजीविओं में अलग-अलग तर्क है। कुछ इसे उचित मानते हैं तो कुछ गलत। सभी का इस विषय पर अलग-अलग तर्क है। रघुनाथ ओझा पूर्व प्राचार्य भाटपार रानी डिग्री कालेज देवरिया का कहना है कि अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा से ग्रामीण इलाकों के विद्यार्थियों को लाभ मिलेगा इससे उनकी अंग्रेजी मजबूत होगी।

प्रदीप तिवारी अध्यापक लक्ष्मी राज देवी इण्टर कालेज बलिया भी इसे शिक्षा विभाग की अच्छी पहल बताते हैं। डा. आशुतोष शुक्ल बताते हैं कि शासन ने यह जो फैसला किया है वह सराहनीय है और इससे यूपी बोर्ड के लड़कों को आज के दौड़ में बराबर दौड़ने का अवसर मिलेगा। कहा कि शिक्षा का अधिकार कानून लागू हो जाने के कारण केन्द्र सरकार की पहल पर अच्छे अध्यापक भी नियुक्त किये जाएंगे। डा.अखिलेश राय ने कहा कि यूपी बोर्ड के इस फैसले से हिन्दी का भारी नुकसान होगा। बच्चों के ऊपर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। श्री राय बताते हैं कि आज जो विद्यालय अपने आप को अंग्रेजी का जनक बताने का दावा करते हैं उनके यहां तो अंग्रेजी का स्तर काफी सतही है तो यूपी बोर्ड की क्या बिसात। कहा कि सिर्फ मान्यता दे देने से विद्यालय का माहौल नहीं बदल सकता इसके लिए काफी तैयारी की आवश्यकता है। यूपी बोर्ड के जिन अध्यापकों को अच्छी हिन्दी नहीं आती उनसे क्या अपेक्षा की जाय कि वे अंग्रेजी पढ़ा सकते हैं।

अभी प्राप्त नहीं हुआ आदेश: शिवजी

बलिया: सीबीएसई की तर्ज पर यूपी बोर्ड के स्कूलों में मान्यता और शिक्षा देने के सवाल पर जिविनि की अनुपस्थिति में कार्यालय के मान्यता लिपिक शिवजी उपाध्याय ने कहा कि अभी शासन से इस बाबत कोई आदेश या पत्र प्राप्त नहीं हुआ है। अत: इस बाबत कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। विद्यालयों द्वारा अप्रोच किये जाने पर कहा कि एकाध लोग इस बाबत इन्क्वायरी किये हैं पर उन्हे शासनिक पत्र आने तक प्रतीक्षा करने के लिए कहा गया है।

सुरहा की हसीन वादियों में घुली जहर जमीन में पड़ी दरारे !

बेरुआरबारी (बलिया), निप्र । सुरहाताल की हसीन वादियों में जहां कभी अथाह जल से पूरा सुरहाताल भरा रहता था और उसमें विभिन्न प्रकार के हजारों-हजार की संख्या में पशु पक्षियां विचरण करती थीं। सुबह-सुबह ही उनकी मनमोहक आवाजें सुनकर लोग जग जाते थे। नावों पर सवार मछुवारे अपनी जीविका के लिए सुबह ही मछली पकड़ने निकल पड़ते थे तथा सुरहाताल के किनारे-किनारे हरी हरी घास काटने व गाय भैंस चराने क्षेत्र के सैकड़ों पशुपालक लाया करते थे। इसे देख लगता मानों धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है। इस वर्ष अवर्षण व भीषण सूखे के चलते पूरा सुरहाताल सूख गया है और धरती पर बड़ी-बड़ी दरारें फट गयी हैं। काले ताल में भी काफी कम पानी हो जाने से मछुवारों के रोजी रोटी पर आफत आन पड़ी है। पशु से लेकर पक्षी तक पानी की तलाश में इधर से उधर भटक रहे हैं। अब तक दर्जनों नील गायें पानी की तलाश में काले ताल के तरफ रूख कीं तो कीचड़ में फंस कर दम तोड़ दीं। पानी के लिए हाहाकार मचा है, भगवान भास्कर भी इसमें सहयोग कर लोगों की जान आफत में डाले हुए हैं। सुरहाताल की धरती पर बड़ी-बड़ी दरारें फट गयी हैं। अब पक्षियों की आवाज सुनने के लिए कान तरस रहे हैं। ग्राम पंचायत शिवपुर की प्रधान श्रीमती ललिता देवी ने लगातार तीन चार दिनों तक गड़ारी नाले में ट्यूबवेल से पारी भरवाकर पशुओं के पीने के लिए व्यवस्था की लेकिन यह भी ऊंट के मुंह के जीरा ही साबित हुआ। धोबी घाट से लेकर हर जगह सूखा ही सूखा है। सुरहाताल में इस महीने धान की रोपाई का कार्य लगभग पूरा हो जाया करता था। और चारों तरफ लहलहाते धान की खेती दिखती थी। आज सूखे की मार से सुरहाताल की हसीन-वादियां चारों तरफ वीरान नजर आ रही हैं।

Monday, June 21, 2010

मिले संसाधन तो अव्वल होगा बलिया का किसान !

बेरुआरबारी (बलिया)। विद्युत व्यवस्था व सिंचाई के साधन अगर समुचित हो जायं तो अन्य राज्यों से भी अधिक उत्पादन यहां के किसान कर सकते हैं लेकिन व्यवस्था नहीं होने से खेती करने में काफी कठिनाइयां उठानी पड़ रही हैं। उक्त बातें स्थानीय विकास खण्ड के टण्ड़वा निवासी किसान रवीन्द्र नाथ चौबे ने कहीं। लगभग एक एकड़ में श्री चौबे ने मूंग की खेती बेड प्लाटिंग के तहत कर अब तक दो बार तोड़ाई कर चूके हैं। श्री चौबे ने बताया कि इस विधि से खेती करने पर किसानों का खाद, पानी व बीज काफी कम लगता है तथा पैदावार काफी अच्छी होती है। उन्होंने बताया कि अब तक देश व प्रदेश के दर्जनों स्थानों पर जाकर किसानों द्वारा की जा रही नई विधि से खेती का हमने अवलोकन किया। हमारे प्रदेश के किसानों को खेती करने में जो दिक्कतें सामने आ रही है उनमें सबसे ज्यादा विद्युत व पानी की जर्जर व्यवस्था है। दिल्ली, पूसा, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में अधिक पैदावार का मुख्य कारण किसानों का सुविधाओं से लैस होना है। बाहर के किसान जहां संसाधनों से पूर्ण हैं वहीं उनकी विद्युत व्यवस्था भी पूरी तरह चुस्त है। अगर वही व्यवस्था हमारे राज्य में हो जाय तो हम भी पैदावार के मामले में अन्य राज्यों की अपेक्षा देश में पहला स्थान प्राप्त करे। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के सौजन्य से जनपद में प्राकृतिक संसाधन संरक्षण तकनीकी कार्यक्रम के तहत जीरोटिल, बेड प्लाटिंग तथा ट्रैफिक कन्ट्रोल तकनीकी से की जा रही खेती से किसान काफी लाभान्वित हो रहे हैं। बेड प्लाटिंग के तहत मूंग की खेती के बारे में श्री चौबे ने बताया कि इसके दो लाभ हैं एक तो काफी अच्छी पैदावार व दूसरा मूंग पत्ते आदि को हैरो कराकर हरी खाद के रूप में प्रयोग होना तथा इसी में धान की खेती करने से काफी कम लागत में धान की पैदावार भी अच्छी होगी। श्री चौबे ने किसानों को नई तकनीक से खेती कर लाभ उठाने की भी बात कही। अब क्षेत्र के आसपास के गांवों के किसान श्री चौबे के यहां जाकर खेती करने के तरीके सीख रहे हैं तथा इस नई विधि को अपना कर अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में लगे हैं।

माननीयों के कृपा पाला नहीं तो गये काम से !

बलिया । यदि आप पिछड़ी जाति के गरीब व मजबूर व्यक्ति हैं तो आपकी पुत्रियों की शादी में सरकार द्वारा दस हजार रुपये देने का प्राविधान है।

ज्ञात हो कि सरकार प्रति वर्ष पिछड़ी जाति के गरीब व कमजोर लोगों की बेटियों के विवाह में दस हजार की धनराशि प्रदान करती है। इसे पाने के लिए संबंधित जन को कितने पापड़ बेलने पड़ते है कहना मुश्किल है। विभाग के तमाम पैतरों को पार करने के बाद भी उसकी पात्रता का पैमाना वहीं आकर अटक जाता है कि वह अपने इलाके के माननीय का कृपा पात्र है या नहीं। यदि नहीं तो सारी पात्रता कूड़े में चली जाती है। पिछड़ी जाति शादी अनुदान योजना की पात्रता की चर्चा करें तो ग्रामीण क्षेत्र में वार्षिक आय 19884 रुपये तथा शहरी क्षेत्र में 25446 रुपये तक के लोग इसकी पात्रता में आते हैं। पर शासन द्वारा पैसा सीमित मात्रा में उपलब्ध कराये जाने के नाते सभी को यह लाभ नहीं मिल पाता। लाभ वही पाते हैं जिनका जुगाड़ अपने विधायक अथवा सांसद तक होता है। अगर नहीं तो गये काम से। हालांकि अनुदान योजना में निराश्रितों, विधवा, विकलांग तथा भूमिहीनों को वरीयता दिये जाने का प्राविधान है पर धरातल पर ऐसा होता नहीं है। अपात्रों को इसका भरपूर लाभ मिल रहा है।

पिछड़ी जाति शादी अनुदान के बाबत जिला पिछड़ा वर्ग कल्याण अधिकारी डीडी सिंह का कहना है कि शासन द्वारा प्रति पात्र व्यक्ति दस हजार रुपये दिये जाने का प्राविधान तो है पर उतनी धनराशि प्राप्त नहीं हो पाती कि जनपद के सभी आवेदकों को संतृप्त किया जा सके। वर्तमान सत्र के बारे में कहा कि इस वर्ष अब तक 41 लाख रुपये प्राप्त हुए हैं। वितरण के बाबत उनका मत है कि प्रयास होता है कि पहले निराश्रितों विधवा, विकलांग तथा भूमिहीनों को ही लाभ दिया जाए। कहा कि पात्रों को तय करने के लिए 'माननीयों' की कमेटी का गठन किया जाता है।

Thursday, June 17, 2010

गांवों में ढूंढे नहीं मिल रही हीरा-मोती की जोड़ी !

रतसर (बलिया), निप्र । क्षेत्र में गांवों की जिन्दगी से दो बैलों की जोड़ी की परम्परा व रस्म रिवाज तेजी से समाप्त हो रही है। यदि यही स्थिति लगातार बनी रही तो इसमें दो राय नहीं कि आने वाले दिनों में ये परम्पराएं मात्र यादगार बनकर रह जायेंगी। जब से गांवों में टै्रक्टर, बिजली व अन्य वैज्ञानिक कृषि संयन्त्रों का तेजी से प्रचलन बढ़ा है सदियों से चली आ रही दो बैलों की जोड़ी की उपयोगिता यहां से समाप्त होती जा रही है। अब तो ढूंढने पर भी नहीं मिल रही है हीरा-मोती की जोड़ी।

कस्बे के बड़े बुजुर्गो का कहना है कि कभी ऐसा भी समय था जब गांवों में लोगों के दरवाजे पर पक्की व कच्ची मिट्टी की चरन बनायी जाती थी। एक तरफ बैलों की जोड़ियां तो दूसरी तरफ दुधारू बांधे जाते थे। पहले जब ग्राम्यांचलों में कृषि संयंत्रों का प्रचलन नहीं था उस समय इन्हीं बैलों के सहारे खेती बारी घर गृहस्थी से लेकर सिंचाई मड़ाई यहां तक की तेल की पेराई तक की जाती थी। आज के परिवेश में सब कुछ बदल चुका है सारा काम आधुनिक यंत्रों की सहायता से कराया जा रहा है। यहीं नहीं गांव की पक्की सड़क पर जब से टै्रक्टर व ट्रालियों ने तेज गति से सफर करना शुरू कर दिया है मंद गति से चलने वाली बैलगाड़ियों का युग धीरे-धीरे समाप्ति पर है।

एक समय था जब इन बैलगाड़ियों का समान ढोने से लेकर नव विवाहित दुल्हनों की विदाई तक में प्रयोग होता था। सूर्य की निकली किरणों की आकृति वाले पहियों व काष्ठ उपकरणों पर आधारित बैलगाड़ियों को घुघरूओं व घंटियों से बंधे जुड़वा बैलों द्वारा खींचा जाता था। गांव की कच्ची उबड़-खाबड़ रास्तों पर बैलगाडि़यों को खींचते हुए जब जुड़वा बैल घुघरूओं को खनकाते व गले की घंटियों को बजाते हुए आगे बढ़ते थे बरबस ही लोगों की आंखे इनकी ओर आकर्षित हो जाती थीं। वर्तमान में शहरों के रूप में बदलते गांवों की तस्वीर में जुड़वा बैलों व बैलगाड़ियों की आकृतियां धुंधली पड़ती जा रही हैं। कस्बे सहित आसपास के गांवों में स्थिति यह है कि मात्र गिनती के ही किसानों के पास बैल हैं। वो भी शौक के तौर पर रखे गये हैं। वैसे पुराने किसानों का मानना है कि दुनिया में उन्हीं देशों की अर्थ व्यवस्था टिकाऊ सिद्ध हुई है जो मानव व पशु श्रम पर आधारित रही है। इस अर्थ में यंत्रीकरण का मानव व पशु श्रम के रूप में स्थापित होना शुभ संकेत नहीं है।

Tuesday, June 15, 2010

भोजपुरी सम्मान समारोह में फनकारों ने बिखेरा जलवा !

रसड़ा (बलिया), निप्र। क्षेत्र के ग्राम देवसलपुर में रविवार की रात राष्ट्रीय भोजपुरी परिषद के तत्वावधान में आयोजित भोजपुरी सम्मान समारोह व संगीत संगम कार्यक्रम में लगभग एक दर्जन से भी अधिक भोजपुरी संगीत की दुनिया के प्रसिद्ध फनकारों ने जलवा बिखेरा।

कार्यक्रम का शुभारम्भ राष्ट्रीय भोजपुरी परिषद के अध्यक्ष सतीश मिश्रा बाबा व मुख्य अतिथि छात्र शक्ति इन्फ्रा कन्स्ट्रक्शन लिमिटेड के सह निदेशक रमेश सिंह ने संयुक्त रूप से फीता काटकर किया। इस मौके पर मुख्य अतिथि रमेश सिंह ने कलाकारों को साफा बांधकर सम्मानित करने के उपरान्त अपने सम्बोधन में कहा कि लोकगीत भारतीय संस्कृति की आत्मा है। ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन से भारतीय सभ्यता व संस्कृति मजबूत होती है। संगीत संगम की शुरूआत मशहूर गायक श्रीपाल प्रभाकर के स्वागत गीत 'स्वागत करीला राउर दोनों हाथ जोड़ के' से हुआ। तत्पश्चात मंच पर पहुंचे भजन सम्राट बलवन्त सिंह ने अपनी भक्ति गीत 'ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन' से ऐसी शंमा बांधा कि सभी श्रोता भक्ति सागर में गोता लगाने लगे। महुआ चैनल के सूर संग्राम विजेता मोहन राठौर ने गीत 'लहर-लहर लहराये चुनर चटकार भाई''देशी घी के गइल जमाना, डालडा मार करावता' को सुनकर श्रोताओं को झूमने पर विवश कर दिया। गायक रवीन्द्र राजू ने अपनी गीत 'बहरा जानि राजा जी, समझी हमरो मजबूरी' के माध्यम से दर्शक के अन्दर विरह रस का संचार किया। कलाकार कमलेश सिंह ने 'जेकर लन्दन तक ले गूंज गइल आवाज ए सजनी, बागी बलिया ह भारत के सरताज ए सजनी' गाकर देश प्रेम की भावना का संचार किया। इसके अलावा श्रीभगवत राजन, सुरेन्द्र सागर, बृजेश पाण्डेय, चन्द्रभूषण सिंह, ज्ञान प्रकाश सिंह आदि ने भी अपने गीत प्रस्तुत किये। संचालन विजय बहादुर ने किया।

Friday, June 11, 2010

गौरीशंकर राय जैसा कुछ करे यही सच्ची श्रद्धांजलि : राम गोविन्द!

सुखपुरा (बलिया), निप्र । गरीबों, मजलूमों की सच्ची सेवा ही सामाजिक चिन्तक गौरीशंकर राय की सच्ची श्रद्धांजलि होगी। मूल्य आधारित राजनीति के प्रति पूर्णतया समर्पित राय साहब आजीवन गरीबों व मजलूमों के हक व हकूक के लिए संघर्ष करते रहे।

उक्त विचार प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री रामगोविन्द चौधरी के हैं। वह सामाजिक चिंतक व पूर्व सांसद गौरीशंकर राय के 86वें जन्म दिवस पर गौरीशंकर राय कन्या महाविद्यालय करनई के प्रागंण में आयोजित स्मृति समारोह को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित कर रहे थे। कहा कि उनका सम्पूर्ण जीवन किसानों की समस्याओं के लिये संघर्ष करते बीता। वह बराबर अन्याय के विरुद्ध लड़ते रहे। सिद्धान्तों पर अटल रहने वाले राय साहब ने राजनीति को नई दिशा प्रदान किया। हम उनके आदर्शाें पर चल कर राष्ट्र का समग्र विकास कर सकेंगे। जिला पंचायत अध्यक्ष राजमंगल यादव, राणा प्रताप सिंह, अवध बिहारी चौबे, डा.जनार्दन राय, दीनानाथ शास्त्री, सीताराम राय, हरेराम चौधरी ने भी स्मृति समारोह व गोष्ठी को सम्बोधित किया। इस मौके पर सचिव शिवकुमार राय ने वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इस अवसर पर जितेन्द्र राय, दीनानाथ सिंह आदि मौजूद रहे। इसके पूर्व स्व.राय के चित्र पर माल्यार्पण कर लोगों ने श्रद्धासुमन अर्पित किये। स्व.राय के सुपुत्र पारसनाथ राय, अजय राय ने अपने पिता की स्मृतियों को नमन किया। स्वागत प्राचार्य डा.श्रीराम राय, अध्यक्षता सगीर अहमद व संचालन जगत नरायण राय ने किया। आभार वीरेन्द्र राय ने व्यक्त किया।

पुरखों की स्मृति में मेधावी छात्राओं को किया पुरस्कृत

सुखपुरा : गौरीशंकर राय कन्या महाविद्यालय करनई में अध्ययनरत मेधावी छात्राओं को स्व.राय के 86वें जन्मदिवस समारोह में विभिन्न पुरस्कारों से नवाजा गया। बीए भाग एक की छात्रा नेहा यादव को महादेव राय स्मृति चिन्ह, बीएससी प्रथम वर्ष की अल्का सिंह को रमाशंकर राय स्मृति चिन्ह, बीएससी दो की श्वेता राय को शिवशंकर राय स्मृति चिन्ह, बीएससी तीन की निरंजन यादव को उमाशंकर राय स्मृति चिन्ह, बीए भाग तीन की वंदना श्रीवास्तव को हरिशंकर राय, बीएससी तीन की संगीता सिंह को करुणा करण तिवारी स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया। सर्वाधिक अंक पाने वाली वंदना श्रीवास्तव को राम दुलारी राय व अनुशासित छात्रा ममता वर्मा को गौरीशंकर राय विशिष्ट स्वर्ण पदक प्रदान किया गया।

Friday, June 4, 2010

स्नातक में दाखिला : कठिन नहीं डगर पनघट की!

बलिया । स्नातक कक्षाओं में दाखिला लेने वालों के लिए खुशखबरी..। इस वर्ष जनपद के महाविद्यालयों में मारामारी की सम्भावनाएं कम ही है। यूपी बोर्ड की इण्टरमीडिएट परीक्षा के कमजोर परिणाम ने डिग्री कालेजों के प्रबंध तंत्र को काफी राहत दी है। कयास लगाये जा रहे है कि जनपद के करीब-करीब सभी छात्रों का दाखिला इन महाविद्यालयों में हो जायेगा।

बता दें कि माध्यमिक शिक्षा परिषद इलाहाबाद के अलावा सीबीएसई व आईसीएसई के सफल छात्र- छात्राओं की कुल संख्या इस वर्ष जनपद में 30,500 है। इनमें से कुछ का चयन इंजीनियरिंग तो कतिपय का मेडिकल कालेजों में हो गया है। शेष बचे विद्यार्थी स्नातक में प्रवेश लेंगे। बात जनपद के डिग्री कालेजों की करे तो एडेड कालेजों को जोड़कर इनकी कुल संख्या 71 है। सूत्र बताते है कि मान्यता हासिल करने के लिए अभी कतार में चार डिग्री कालेज और खड़े है। अगर इन सभी की सीटों को मिला दिया जाय तो कुल 30,600 सीटे मौजूद है। अगर सभी छात्र-छात्राएं प्रवेश लें लें तो भी बच जाएंगी एक सौ सीटे।

सतीश चन्द्र कालेज के प्राचार्य केएन चौबे का मानना है कि इण्टर पास कर लेने वाले छात्रों में कुछ तो महानगरों की तरफ रुख कर लेंगे। ऐसे में प्रवेश को लेकर इस वर्ष उतनी आपाधापी नहीं रहेगी। वहीं श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राचार्य बीके सिंह का कहना है कि कुल सीटे इस बार भर जाएंगी इसकी भी कोई गारंटी नहीं है।

दूरस्थ शिक्षा होगी मददगार

बलिया: स्नातक में दाखिला लेने वालों के लिए दूरस्थ शिक्षा भी काफी मददगार साबित होगी। इगनू और राजर्षि टंडन के केन्द्रों में प्रवेश की सीमा तय न होने के कारण यहां जितने छात्र चाहें प्रवेश ले सकेंगे।

टीडी, सतीश चन्द्र व कुंवर सिंह पीजी कालेज में फिर भी रहेगा दबाव

बलिया: जनपद के महाविद्यालयों में स्नातक कक्षाओं में प्रवेश के लिए मारमारी इस वर्ष भले ही न हो लेकिन कयास लगाये जा रहे हैं कि शहर के टीडी कालेज, सतीश चन्द्र कालेज व कुंवर सिंह पीजी कालेज में प्रवेश को लेकर दबाव जरूर रहेगा। कारण कि ग्रामीण क्षेत्र के छात्र इन्हीं महाविद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने का भरसक प्रयास करते हैं। यहां बता दें कि सतीश चन्द्र व टीडी कालेज में स्नातक कक्षाओं में प्रवेश के लिए परीक्षा आयोजित की जाती है जबकि कुंवर सिंह पीजी कालेज में बीए में एडमिशन हाईमेरिट के आधार पर होता है।

-जिले में महाविद्यालयों की संख्या-71

-उत्तीर्ण छात्र संख्या-30,500

-स्नातक में कुल सीटे-30,600

-नियुक्त शिक्षकों की संख्या-765

-शिक्षकों के रिक्त पद-103